आत्मानुशासन | Aatmanushasan

Aatmanushasan by गुणभद्र - Gunbhadra

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गुणभद्र - Gunbhadra

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गोपालदास - Gopaldas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ प्रस्तावना- अध्यात्मरसके आस्वादनसे होसकता हैं; अन्यथा नहीं | ( २ )-जो सुख संसारम असंभव हैं वे भी इसीके अभ्याससे प्राप्त होते हैं| इसलिये मोक्षसुखाकांक्षी जरनेकिलिये मी यही अध्यात्म विषय उपयोगी: है । (३)-तासरा कारण अध्यात्मरसकी उपयोगिताका यह भी है कि शानवान्‌ तथा अज्ञानी, सभी इस विषयका मनन कर सकते हैं- ओरः मनन करनेसे तत्काल भी शांति लाभ करते दीखते हैं | इस प्रकार अध्यात्म रससे ओत-प्रोत भरे हुए इस ग्रंथके प्रकाशित होनेकी -सबसे अधिक आवश्यकता थी । अधथकारका सहत्व व पारेचया--- इस गंथर्म सब कुछ विलेगा। परंतु जो जितना अधिकारी है उसको उतना ही मिलेगा । यह ग्रेथ सरलसे सरल व कठिनसे कठिन है। इस ग्रेथकी पूरा समझनेकेलिये न्याय, व्याकरण व साहित्य तथा नीति हन सच विषयेकि जाननेवाले पान्रकी आवश्यकता है । और आत्मोद्धारका उपदेश ते ज्ञानी अज्ञानी, सभीके योग्य भरा हुआ है | आजकलके संस्क्षत विद्वानोंमें राजर्षि भतेहारिकी काविताका बहुत आदर है। परंतु गशुणभद्ग॒स्वामीकी इस कवितामें भी कुछ कमी नहीं हैं; बल्छि कितने ही अंशोमें थह उससे भी चढ-बंढकर है। भर्तृहरिकी कविता सामान्य उपदेशप्रद है; किंतु यह ग्रंथ सामान्य डपदेशके साथ 'ही साथ जैनसिद्धान्तक्रे गूढ रहस्यको भी बताता है और आदिसे अंततक मोक्षप्राप्तिका उपाय भी क्रमानुसार दिखाता है। - ग्रेयवकी सुखबोधकता3--... ६ 7: इस ,अंथमें सामान्य लोकोक्तियोंका तथा अन्य-पुराणोक्तियोंका कई जगह उल्ेख है परंतु उन उंक्तियोंकों अपनी धमेकथा' नहीं सम- झना चाहिये | ओर यह आश्षेप भी करनेकी आवश्यकता नहीं है कि मिथ्या - पुराणबदनार्भोक्नो यहां जगह क्यों दी! क्योंकि, यह पंथ पुराण नहीं हे किंतु धर्मोपदेशी है, इसाकिये जहां साधारण जनोंको




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