बृहद्द्रव्य संग्रह | Brhd-darvyasangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस युग के महान तखवेत्ता कंमिद राजचन्ट्र इस युगके मदन पुरुषोंमें श्रीमद्‌ राजचन्द्रजीका नाम बढ़े गोरवके साथ लिया जाता हे । वे विश्व की महान्‌ विभूति थे । अदभुत प्रभावशाली, अपनी नाम॒वरी से दूर रहनेवाले गुप्त मद्दात्मा थे। भारत-भूमि ऐसे ही नर-रत्नोंसे वसुन्धरा मानी जादी है । जिस समय सलुष्य समाज आत्मधर्मको भूल कर अन्य वस्तुओमें धर्मकी कल्पना या आान्यता करने छगता हैं, उस समय उसे किसी सत्य सार्गदर्शककी आवश्यकता पड़ती है । प्रकृति ऐसे पुरुषोंको उत्पन्न कर अपनेको धन्य मानती है। श्रीमद्‌ओी उनमेंसे एक थे । श्रीमद्‌ राजचन्द्रजीका नाम तो श्राय+ चहुतोंने सुन रखा है, और उसका कारण भी यह है राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजीने अपने साहित्यमें इनका जहां तहां सम्मानपुर्वंक उल्लेख किया दे । वे स्वयं इनको घमंके सम्बन्धभे अपना सार्गदशक मानते थे । महात्माजी लिखते हैं. कि-- मेरे ऊपर तीन पुरुषोंने गहरी छाप डाली है-टाल्सटॉय, रस्किन और राजचन्द्रमाई। टाल्सटाय ने अपनी पुस्तकों द्वारा और उनके साथ थोड़े पत्रव्यवद्वारसे, रस्किनने अपनी पुस्तक अन्डु घिस छास्ट” से, जिसका शुजराती नाम मैंने सर्वोदिय रक्खा दे, ओर राजचन्द्रभाईने अपने गाढ परिचय से । जब मुझे हिन्दू, धर्मसे शद्ला उत्पन्न हुई उस समय उसके निवारण करनेमें राजचन्द्रभाईने मुझे बडी सद्दायता पहुँचाई थी । ई सन्‌ १८९३ में दक्षिण अफ्रिकामें में कुछ क्रिश्चियन सज्जनोंके विशेष परिचयमें आया था। अन्य घर्मियोंको क्रिश्चियन बनाना ही उन्तका प्रधान व्यवसाय था। उस ससय मुझे हिन्दू धर्मेम कुछ अश्रद्धा हो गई थी, फिर मी मैं मध्यस्थ रहा था| हिन्दुस्तानमें जिनके ऊपर मुझे छुछ श्रद्धा थी उनसे पत्रव्यवद्दार किया । उनमें राजचन्द्रभाई मुख्य थे, उनके साथ मेरा अच्छा सम्बन्ध हो चुका था। उनके भ्रति मुझे सान था, इसलिए उनसे जो कुछ मुझे मिल सके उसको प्राप्त करने का विचार था । मेरी उनसे भेंट हुई । उनसे मिलकर मुझे अत्यन्त शान्ति मिले । अपने पर्ममें दृढ श्रद्धा हुई । मेरी इस स्थिति के जवाबदार राजचन्द्रभाई हैं । इससे मेरा उनके प्रति कितना अधिक मान होना चाहिये, इसका पाठक स्वयं अनुमान कर खकते हैं ।?




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