विद्याधर - ग्रंथावली | Vidyadhar Granthawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरनामाम॒ते चतुर्थः सर्गः
( मल्लस्वभाव:, प्रकृतिजनितम॒परिचतेनम्,
यज्जोवनं तद्यत एवं लोके, काशीयात्रा )
विरम्य नित्याह्विकभत्संनात्तत् प्रतीक्षमाण: समय हि सौम्यम्
अभो विधानाय समप्यें सर्वेम् तृष्णी स तस्थो कत्तिचिहिनानि ॥शा
स्वस्मिन्तुदासीनमति सदेव॑ खिन्नें तथा त॑ च समीक्षय तातभ्
त्रूते यथापूर्वमर्य न कस्मात् मयेति पृत्रोध्प्यचरश व्यचेत्तीतु ॥२॥
प्रसादनायव पितु यंयौ तदु ग्रुरो ग्रृंहम पुस्तकपारिरेष
कार्य कचित् कारणतों जगत्याँ पृथग् विचित्र श्रयते स्वरूपम ॥३॥
निरीक्षय तस्मिन् परिवतंन तत् पितुर्मनश्चापि दधार धैय्यम
स्वयं कदाचिक्राभता स्वलक्ष्य गति गृहीत्वाभिनवा स मग्नौ ॥४॥
प्रीत स पुत्र॑ निजगादु भद् । त्याज्यस्त्वया सम्प्रति मूर्ख संग
मौनेन यक्तेन नतेन मूर्ध्न श्रुत वचस्तत स बभूवतुष्ट ॥(॥।
अथंकदा वामनपर्वंपके. समाकुले जानपर्देश्ष पौरे:
महीत्सवे सर्वजनाभिरामे भहोत्सवोइभूतू परम. प्रसिद्ध ॥६॥
नानाप्रदेशागतमह॒वी रा विद्यालवक्ष स्थलदीघंजंघा
प्रदर्णयन्त. स्वकला विभिन्ना ग्राहपयन् दर्णक - चित्तवृत्ती ॥७॥
तेब्वेवः कश्नित् स्ववलाभिमानी विद्वर्ण॑यस्तन्नगराभिमानस्
लोकान्मूहु धर्येयति सम यस्मात् गगाक सोढु नहि. तन्मनस्वी ॥८॥।
महस्वभावेन हतात्मधैर्यों विस्मृत्य सर्वाशि पितु दंचासि
सम्प्रेयेंगार. समयेन त्तेन क्षोन महाडुणमाव्रिवेण 18॥
विधाय नाम स्मरण गुरोश्व ध्यायंस्तथा मारुति वीरमूतिम्
आास्फालयन् बाहुतट विद्याल घूली स रंगस्यथ दघार मृध्चि ॥१०॥
परस्पर मल्कलाभिलीनो हस्तेन धृत्वा प्रतिमछहस्तम
सम्पश्यतामेव त्ततो जनाना न्यपातयद् भूमितले भट तमर ॥5 |
रफ़र्त्या स्वणक्त्याज्तुलयाथ दीप्सां स्वस्थान कौमिम्पन्ति: प्रकर्मन
मुरार्सुनु विजयी विरेजे क्षगों क्षणे सलब्यजयासिधोष ॥ ५०1
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