मुद्राराक्षस - नाटकम् | Mudra Rakshas-natakam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२६ मुद्राराक्षसम्‌ परास्त किया। यह चद्वगृप्त विक्रमादित्य है, जो मगध का राजा था और जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी तथा राज्यकाल पाँचवी शताब्दी था। अत यह कहा जा सकता है कि विशाखदत्त पाँचवी शताब्दी मे हुए थे और चन्द्रगुप्त द्वितीय, जो मगध का राजा था, के आ्राश्नय मे बगाल के एक छोटी-सी रियासत पर राज्य करते थे। ११. जन्म-स्थान इसके अतिरिक्त नाटककार के जन्म-स्थान, जन्म तथा मृत्यु-काल का भी कुछ पता नहीं। महामहोपाध्याय प० हरप्रसाद शास्त्री की सम्मति है कि गौडीय रीति की बहुलता से कवि गौडदेशीय ज्ञात होता है। कवि ने गौड देश की ललनाओं के कपोलो का और केशो का जो वर्णन किया है उससे वह गौडदेशीय ही जान पड़ते है। गौडाना लोध्रधूलीपरिमलबहलान्‌ धृम्रयन्त कपोलान्‌ क्लिइनन्त क्ृष्णिमान अ्रमरकुलरुच कुबड््चितस्यालकस्य । पाशुन्व्यूहा बलाना तुरगखुरपुठक्षोदलब्धात्मलाभा शत्रणामृत्तमाड़े. गजमदसलिलच्छिन्लमला. पतन्तु ॥ (५-२३) प्रस्तावता मे कवि ने लिखा है-- चीयते बालिशस्थापि सत्क्षेत्रपतिता कृषि । न शाले स्तम्बकरिता वसप्तुर्गुणमपेक्षते। (१-३) इससे प्रतीत होता है कि विशाखदत्त ऐसे स्थान मे पैदा हुए थे जहाँ चावल की खेती अधिक होती थी और चावल बिहार और बजद्भाल मे अधिक होता है तथा कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) गोडदेश (बगाल) के बहुत समीप है। श्रत उनको उत्तर भारत का (बंगाली) मानना असगत न होगा जैसा कि प्रोफेसर शारदारजन राय लिखते है। प्रोफेसर विधुभूषण गोस्वामी ने भी उनको उत्तरी भारत का निवासी मानते हुए लिखा है कि नाटक मे' एक को छोड कर सभी स्थान उत्तरा- पथ के है। १२ विशाखदत्त का शास्त्र-ज्ञान मुंद्राराक्षस के अध्ययन करने वाले विद्वानों ने विशाखदत्त को न्यायशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र का पण्डित माना है । मुद्राराक्षस के चतुर्थ अडू के तृतीय इलोक




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