गोवर्धनाचार्य की आर्यासप्तशती का आलोचनात्मक अध्ययन | Govardhanacharya Ki Aaryasaptashati Ka Alochnatmak Adhyayn

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Govardhanacharya Ki Aaryasaptashati Ka Alochnatmak Adhyayn  by रामचन्द्र शुक्ल - Ramchandar Shukla

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र शुक्ल - Ramchandar Shukla

Add Infomation AboutRamchandar Shukla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
करी सुनाभः को हौ अन्तः प्रमाण का आधार माना णाता है। इसके विपरीत बाह्य प्रमाण के अन्तगत उन तथ्यों का संग्रह ककया जाता है णो कीव के युग ठी अम्यकृौतियों : मैं उील्लीयत होते है। বগল अत्तु; आवारय गोषधेन के काल-निभ्य हेतु उप्ैक्त दिविध प्रमाणो का आश्रय तेना प्रेष्णा होगा। सवप्रथम अन्तरहण प्रमाण को स्पष्ट करना है- अन्त: प्रमाण गो वधनावाये ने ग्रन्थारम्म ्रन्या भे र्स्कृतवाहूमय के अनेक महाकीवयोः की परम श्रद्या के ताथ त्वीव की हा इसक़म में सपेप्रधम आगदकीपं वाल्मीकी | ) प्यास + 3 4 5 ৬.6 दहत्फधाकारं गुणाद्रय , महाकोप कालदास + महाक भकपरीति , पहाकीव আযান फी सतत की है। | 1वीहतधपनालंकरं पवित्रां वतीमयस्य्छुरणम्‌ | ष्रायुधीमव कक वल्मीक्मृवं कविं नौमि || পান] ও] || 2० व्यात्ीगरां मेनया सारं गवव भारतें बन्दे । भृषणतवैव संज्ञा यदह्क्तां भारती पहात: ।। आ ६० उ। ।। 3. अतदीधनी वदरो ष्राद्रयासेन यो ऽपहाररतं हन्तः । कैन च्यते गुणादयः घ एव नन्मातरापन्नः 11 আআ] জট হি || 4९ ताकूतमधरको मती वला तिनी कण्ठकृणित्रा ये | पिक्षासम्येऽभेप यदे रहलीलाकालिदासोक्ति: ॥। आ0 स0 35 ।। 5° मकुते: सम्बन्धादभूधरभ्रेव भारती मात । एतत्कृतकाल्ण्ये क्मन्यधा रोदति ग्रावा ।। आ0 प्र 56 || 8* जाताप्िछणण्डनी प्रा ग्यधा शष्कण्डी तथावगच्छाम। पञल्म्यमाधकमा तं पाणी बाणो वभूत || গা ० 37 1|




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now