तर्कसंग्रह | Tark Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tark Sangrah by डॉ. आद्या प्रसाद मिश्र - Dr. Aadhya Prasad Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. आद्या प्रसाद मिश्र - Dr. Aadhya Prasad Mishra

Add Infomation About. Dr. Aadhya Prasad Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका भारतीय दर्शेत एवं उसके भेद दर्शन! शब्द सस्कृत की हश्‌ (दर्शने अथवा ज्ञानसामान्ये) धातु से ल्युट्‌ प्रत्यय लगने से बनता है। ल्युट्‌ प्रत्ययः भाव! तथा 'करण' दोनो ही अर्थों में लगता है। इस प्रकार दर्शन” शब्द का थर्थ साक्षात्कार या ज्ञान एव उसका साधन, दोनो ही होता है। इसका तात्पर्य यह है कि समग्रजीवन या सारी सृष्टि के स्वरूप या तत्व पर विचार और फलतः उसका ज्ञान या साक्षात्कार ही दर्शन है। इस प्रकार दर्शन समग्र जीवन के सभी पक्षों से सम्बद्ध है। जीवन- सम्बन्धी किसी भी ज्ञान-विज्ञान को इससे पृथक नही रखा जा सकता। इसी- लिये आधुनिक युग मे भी इतिहास, समाज-शास्त्र, राजनीति तथा विज्ञान आदि से दर्शन का सम्बन्ध दिखलाया जाता है। मनोविज्ञान तथा धर्मशास्ल से तो दर्शन! का घनिष्ठ सम्बन्ध है ही । इस प्रकार के तत्त्वविवेचन के लिये आन्वीक्षिकी' शब्द का प्रयोग अत्यन्त प्राचीन है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आच्वीक्षिकी” चतुविध विद्याओ मे परिगणित है । वे इस प्रकार हैं--आन्‍्वी- क्षिकी, ज्ञयी, वार्ता तथा दण्डनीति । इनमे आन्वीक्षिकी कां विवरण देते हुये साख्य, योग भोर लोकायत को परिगणित किया गया है । इससे ज्ञात होता है कि कौटिल्य के समय तक दर्शन! शब्द के पर्याय रूप में आल्वीक्षिकी शब्द प्रचलित हो चुका रहा होगा । मनुस्मृति ७1४३ में आल्वीक्षिकी को आत्मविद्या कहा गया है। कामन्दकीयनीति ० ७७ में इसे आत्म-विज्ञान कहा गया है। इससे जान पडता है कि मनुस्मृति तथा कामन्दकीयनीति० के समय तक दर्शन के लिये आत्मविद्या, आत्मविज्ञान आदि शब्दों का भी प्रयोग होने लगा था । यह कैसे तथा क्यो हुआ ? भारतीय सांस्कृतिक परम्परा मे जिसे दर्शन! कहते है बहु जीवन की प्रयोगशाला में अनुभव किया गया सत्य है, चाहे वह साध्य-विषयक हो और १. द्रष्टव्य--तकभाषा, डॉ० श्रीनिवास शास्त्री की भूमिका, पृ० १




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now