चंद्रालोक | Chandralok

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Chandralok by ब्रजजीवन दास - Brajjivan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ शीहरि' श्रीर्पीयूषषपजयदेवकाविविरचित: चन्द्राठोकः >> ++ प्रथमो मयूखः उच्चेरस्थाति भन्दतामरसता जाग्रत्कछटैरव- ध्वेस इस्तयते च या सुमनसामुर्लापिनी मानसे । दुष्टोयन्मदनाशनाचिरमछा छोकत्यीदर्शिफा सा नेत्रश्नितयीव खण्डपरशोपाग्दिवता दीव्यतु ॥ १ ॥ पस्रथकार मगलाचरण द्वारा घावेयता सरस्वती फो खणड- परशु शकरः के नेघ-त्रय के सद्टता तसदुगुणसम्पन्न होने की इच्छा प्रकट फरता है श्र्थाव्‌ तीनों नेत्र ( सूर्य, चन्द्र शोर अग्नि ) निज निञ प्रस्ति विशेष द्वार जिस रूप से लोकद्वित साधन फरते हूँ चैसे ही बाग्देयी फे प्रसाद से उसके भक्तों फा भी हित साधन हो। विद्यार्थियों फो श्राहस्य नहीं होना चाहिए ञझत भनन्‍्दृता शर्थात्‌ आाल्स्य का मादा फरे । “अरसिकेपु फवित्व-निवेदुन शिरसि मा लिख मा लिख भा डिफ्ए इत्यादि प्रमाण द्वारा श्रसता का भी नाश करे 1 इन्हीं कारणों से सुमनसा श्रर्थाव्‌ भ्रच्छी बूत्तिवार्लों के मानस- सर के कुर्हिलाए हुए केरव-चन की यह चम्द्रालोक अपनी




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