भारतीय संविधान तथा नागरिकता | Bhartiya Sanvidhan Tatha Nagrikta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.55 MB
कुल पष्ठ :
523
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् भारतीय संविधान त्तया नागरिकता
सस्या हो गई। सन् १८३३ में ब्रिटिश पाखियामेंट ने यह घोपित किया कि भारत
में जो कुछ कम्पनी के श्धिकार में है उसके ययाथें रवामी त्रिटिश सझ्राड तय
उसके उत्तराधिकारी हैं। सन् १८५३ के झाज्ञापत्र में यह कहां गया कि भारत
की भूमि तया. आय तव तक के लिये कम्पनी को प्रदान किये जाते है जब तक
कि पर्थलयामेंट कोई अन्य आदेश न दे। इससे यह स्पप्ट था कि ब्रिटिश
पार्लियामेंट भारत में कम्पनी के शासन को श्रत्त करने का सोच रही थी ॥7
७“ दिख का विद्रोह --कम्पनी का राज्य भारत में स्वापित हो गया था।
कई भारतीय नरेसों को पदर्वचिहीन कर दिया गया था। भारतीय जनता की
भावनाओ का कोई शझ्रादर नहीं था और न यह जानने की कोई चेप्टा की गई
थी कि भारतीय जनता कम्पनी के राज्य से सम्तुप्ट हूँ ्यवा अ्रसन्तुप्ट 1 इन सच
बातों का फल यह हुमा कि श्रसन्तोप वढने लया और सन् १८५७ में विद्ोह
फूट पडा। इसने एक समय तो विदेशी बासन की जड़ हिला दी थी पर अत्त में
भारतीयों की आपसी फूट के कारण यह श्रसकल रहा ।
गावर्नेमेंट श्रॉफ इन्डिया ऐक्ट --इस विद्रोह के परचातू अँग्रेजी सरकार
ने कम्पती के हाथ से समस्त झक्ति छीन छेनें का निश्चय किया और इस म्रकार
दंघ-रासन का, जिसका प्रारम्भ सन् १७७३ में हुमा था, अन्त हुआ । कम्पनी
ने पूरा पयत्न किया कि उसकी दब्ति न छीनी जावे जौर इस उद्देश्य से पालिया-
मठ के दोना भ्वना को श्रावेदन-प्रतर भी दिया, परन्तु इसका कोई परिणाम नहीं
निकला । सन् १८५८ मे पालियामेट ने गवर्नमें 2 ्माँव इन्डियां ऐक्ट पास दिया ।
इसके द्वारा कम्पनी के राजनीतिक अधिकारा का अन्त हो गया। भारत का
शासन सीधा सम्राट (0५४01) को दे दिया गया। इसके लिए एक राज्य-
मसयी नियुक्त चिया गया जो कि भारत-मद्ी कहलाया। उसके सहायता्थ एक
१५ सदरसया को भारत कौन्सिल की नियक्ति की गई। इसमें ८ सो सम्राट द्वारा
नियुक्त तय 3 का कोर्ट ऑव डायरे कटसे ढ्वारा निर्वाचन तय हुमा । इस प्रवार:
कोर्ट ऑँव डायरेवटसं के हाथ से सब दाक्ति छीन ली गई भारत-कौन्सिल के
प्रत्येक सदस्य का १९२०० पौड प्रति वर्प, वे तन निदिचित्त हुआ । इस कौसिर का
सारत-मन्री श्रथ्यक्ष था। कौन्सिठ की कार्य उसको सलाह देना था । बह कौन्सिल
की राय के विर्द्ध भी निर्णय क्र सकता था।
भागरत-मती, कौन्सिल के सदस्य तथा उनके वार्यालय ( 08 0५८)
का व्यय भारत की देना पड़ा भारत-मत्री को प्रतिवर्ष पालियामरेट के सम्मुख
व्यसन
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