भाषाका प्रश्न | Bhasha Ka Prashn

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Bhasha Ka Prashn by चन्द्रबली पांडे - Chandrabali Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्ड् ९ ः ' राष्ट्रभाषा की परंपरा राजभापा भी हो गई |. परंतु आगे चलकर विदेशियों की भाँति ब्रह भी सर्वथा स्वदेशी बन गई ओर वहाँ की भाषा में सित्र जुल ऋर बह का हा रहा । ' पशाची के परीक्षकों ने उसके देश के अन्वेषण में कुछ गड़- चड़ी कर दी हैं। उन्होंने ईंस वात की त्निक सी चिता नहीं को कि पेशाची देशसाणा के अत्तिरिक्त राजभाषा भी है। पेशाची के विषय में प्राचीनों का मत है कि वह विध्य था विध्य की पड़ोसिन भाषा हैं। राजशेखर (९वीं शतती.) ने काव्यमीमांसा में एक प्राचीन पद्म उद्यत किया है। इसमें स्पट्ठ लिखा है--- #आ्रावन्त्या: पारियात्रा: सह दशपुरजैसू तमाष्ां मजन्ते? . कह दी 3 ( आ०.१०, प० ५१ )। सके सिवा कवि-ससाज? सें--- «० मै ह च्िगत; सृतसापाकवय:! का चिधान किया है.। . भूतभापा से उनका तोत्पय पैशाची है । उन्हंनि स्पष्ट कहा हैं ढप “तत्र पिशाचादयः शिवाुचरा: स्वभूमी संस्कृतवादिन: मर्त्ये तु थूतसापया व्यवहरन्तों निवन्धनीया:-।? ( बही. प्रू० २९-)। अतणव राजशेखर के असाण पर दक्षिण भूतमापा का प्रांत ठह- ' शता है और विध्य-अ्रदेश से उसका परंपरागत संबंध सिद्ध हो ज्ञाता हैं । किंठु इस प्रतिज्ञा में अड़चन यह आ जाती है दक्षिण महाराष्ट्रा का ज्ञेत्र र 1 वहाँ को भाषा का पुराना तथा पअचल्ित साम् पेशाची था भूतभाषा नहीं, अत्युत : दाज्षिणात्या आहत हैं। क्क्ष्मीघर ने साफ साफ कह दिया है-- ६/४




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