भागो नहीं दुनिया को बदलो | Bhago Nahi Duniya Ko Badalo

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Bhago Nahi Duniya Ko Badalo by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुनिया बयो मरक है ? कप उसको दस आना मिलता | सरकार को भी नुबसान नही था, उसे भी सात रुपया छ झाना मिल जा सकता था । दुखराम--अब सालूम हुआ भैया ! कैसे कपड वो इतना महँगा कर दिया। भैया--लासा या रवड ताने से बढता है, सेकिंन उसकी भी हद होती है ! कोस-दो-कोस तक कोई खासा फो थोडे ही तान सकता है ? दुखराम--कोस दो कोस क्या हाथ दो हाथ भी नहीं खीच सकते । भैया--फारखाने वाले नफा कमाने के लिए चीजों वा दाम चौगुना-पचगुना क्र दिया 1 अब तुम्दी बताओ, सोलह रुपया जोडा खरीदने में एक छोटी-मोटी भेस स्लेचदी पड़ती न? दस सेरका गेहूँ बेंचते तो चार मन गेहें घरसे निकाला पडता। किसान शेवार होते हैं, उनवो समझ नही होती सब कहा जाता है, लेकिन जब वह देखते हैं, कि घजार मे जिस चीज पर भी हाथ लगाते हैं, उसी-वा दाम 'चोगुना- पतंगुना है, तो वह गेहूँ को दस सेर का कैसे बेचते ? गेहूँ का दाम भी भहेंगा होने लगा। जब ढाई-दो सेरका होने लगा, तो पहिले उन लोगों मे घबराहट हुई, जो कि न किसान हैं, न सेठ हैं, न सरकार । अनाज महेंगा होना उसके लिए उतना बुद्ा नहीं होगा, जिसको देना-पावना बेवाक करके खाने भरको धर मे अन्न रह जाता है ! लेकिन जिसके घरमे बैसाखमे ही अन्न नही रह जाता, वह क्यार तक बौसे काटेगा ? बगाल मे यही हुआ, , चावल रुपये का दो सेर, नहीं बैसाख में दो रुपये सेर हो गया । अब तुम ५ जिसके पास बैसाख में ही अनाज खतम हो जाता है, वह दो रुपये सेर अनाज खरीद कर कितने दिनो तक खा सकता है ? दुखराम--घर में दस परानी हुए तो पेट जिलाने के लिए भी तीन सेर घावल चाहिएं। छ रुपया रोज लगाने पर तो अपाढ ही तक हल-बैल, घर-दुआर, जर-जमीन प्तव बिंक जायेगी । भैया--सद बिक जायेगी, तब घरवाले क्या करेंगे ? दुखराम--वही भैया जो तुमने कहा है, लाज-सरम भी चली जायेगी, इज्जत भी बिक जायेगी, और तब भी तैया पार होगी कि नही, इसमे भी सक है । भैया--तो जो साठ लाख आदमी वगाल मे मर गये, उसका कारन तुम्हें मालूम हुआ * उनका खून किसवी गर्दन पर है ? दुखराम--कारखांने वालो और सरकार के ऊपर, उन्होंने ही अन्धेर-गरदी 'की तभी न अन्न का दाम बढ़ा । भैया--दो गरदत्त तो तुमने ठीक बतलाई लेकिन एक गरदन अभी जौर बाकी है। नही बल्कि एक मद कही, यह चोरबाजार फा भद है । सन्‍्तोखी--हाहू लोगकी बाजार लगती है यह तो सब जानते हैं क्या चोरी की भी बाजार होती है भैया ? हे हे भैया--होती है और सरवार बहादुर वे राज से दिनदहाड़े लग रही है। कपडे के वारवाने दालो ने देखा, यह तो दस आना हमारे हाथ से बस ६ छ आना सखपर से लेती है, बयो ने हम अपते माल को चोरी घोरी बेच लें । 5




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