व्यक्ति की तलाश | Vyakti Ki Talash

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Vyakti Ki Talash by योगेन्द्र कुमार रावल - Yogendra Kumar Rawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाड़ी विज्ञान शिक्षण--एक समाधान / 25 हुई, रक्षावस्धन के गौरव को भी धूल में मिलाती है ! सैवस की यही विकृृति क्रत्याओं, छात्राओं, यौवनाओं में स्वच्छन्दता के प्रदर्शन के रूप में प्रकट होती है। कुछ तथाकथित प्रगतिशील वर्ग सैक्स की मर्यादाओं की प्रतिक्रिया के रूप मे ही 'फ्री सैक्स सोसाइटी' का स्वाग भरते हुए आधुनिकता का दम भरने के लिए बलब, सोसाइटी, तथा परस्पर मित्रवर्ग मे ही सैक्स का आदान-प्रदान करके सन्‍्तोष की सांस लेते है । तीसरे वे है--जो न 'कट कर', न काट कर' वल्कि स्वय ही कुठित होकर सज्जनता का जामा ओढकर तेजशून्य विक्षिप्त जीवन जीते है तथा अंगूर घट ' कहकर सैक्स और मानवीय सम्वन्धों को ही कोसते हैं । उधर विदेशों में मानवीय सम्बन्ध सेव्स के अतिरजित अभिशापो से ग्रसित है तो इधर कूठित सैवस तथा चरित्र की आत्म-प्रवचक परिभाषा ने संक्रान्तिपूर्ण मनःस्थिति मे हमारे मानवीय सम्दन्धों को दुःखान्त कर रखा है! एक तरफ दयानन्द-विवेकानन्द के ब्रह्म चर्य के आदर्श और दूसरी तरफ आज 1978 मे भी खुले वेश्यालय, तड़पती बदनाम विधवाएं, अरक्षित अनाथ कन्याएं, चंद और पैस्तों के बल पर लूदा, खरीदा और बुलाया जाता हुआ यौवन--कक्‍्या गाँव बया शहर ?--सब के घर-परिवारों में निराश होकर रिश्ता मोड़ते हुए व जहर खाकर दम्म तोडते हुए प्रेमी; समाज और कानून के पाटो में पिसते हुए मर्भपात के आलोचनात्मक नजारे; अनमेल विवाह से दुःखी होकर दिल-दिमाग से कटते हुए पति-पत्नी; जाति-बिरादरी मे अपनी नाक रखने और कटने वाली खिस्ता की चिता पर घढ़ें हुए मान्याप - ये सब जब सैक्स की छलना से छलनी हुए जाते हैं तब सब धर्म-धर्माचार्य और धर्म-स्थान मूक व मौन नजर आते है--उस समय फिर अस्पताल, कचहरी, पुलिस तथा सविधान की घाराएँ मार्ग प्रशस्त करती हुई आत्तिम फैसले देती हुई नजर आती है। इन अवसरों पर व्यक्तिगत आस्था और सामाजिक संबधानिक व्यवस्था के बीच एक जबरदस्त दरार दिखाई देती है जो सैक्स के सैद्धान्तिक जनाजे और व्यावहारिक तकाजे का समन्वय नही बँठाने देती ऐसी स्थिति मे 'जनरल ले मैन' के बीच जीता हुआ व्यवित जब व्यंग्य-आलोचना की उंगली का निशाना बनता है, ताक रखते और कटने का आधार बनता है तथा जब उसका सैक्स और मानवीय सम्बन्ध चरमराता है तव मजबूर होकर वह कल के व्यक्ति की तलाश मे निकलदा है । तो कहाँ मिलेगा वह व्यक्ति ? सैवस और मानवीय सम्बन्धों को सुलझे हुए व्यावहारिक तकाजे से निभाने वाले कुठामुक्त व्यक्ति को रामायण, बाइबिल और कुसन भे खोजने की अपेक्षा शरीर-चिकित्सा और नाड़ी विज्ञान मे खोजा जाचे तो अधिक समीचीन होगा। शरीर शास्त्र के अन्तर्गत कुडलिनी शक्ति को मानव शरीर की प्रचण्ड क्षततावाली शब्ित माना गया है । यह कुडलिनी शवित कामुकता के मार्ग से पतनोन्‍्मुज होती है और ऊध्वेंगमन के मार्ग से तेजस्वी होती है।




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