राग मरुगन्धा | Raag Marugandha

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Raag Marugandha by रामप्रसाद दाधीच - Ramprasad Dadhich

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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और सौमियल होने के लिए शराव का इस्तेमाल जरूरी हैं। क्षाज के युग में शासन में बैठे लोग हो या नौकरशादी में, सभी इसके मतवाले हैं ।” “दसे, मैं तो स्वास्त्य के नाम पर जाम पीता हूँ । बस एक या दो पेग भूख जाग्रत करने के लिए | फिर खाता खाकर सो जाता हूँ, सच वहुत मीठी और गहरी नींद आती है ! वर्ना तुम जानो, आाज की तनाव भरी जिन्दगी मे सुख की तीद किरो नमीव है !” धेवरचन्द प्रधान ने कहा ! “हाँ भूय ही तो जगाते हो तुम, पेट की और तन दोनो की भूख !” सभी हँस पड़े । हँसी मानो झरने सगी थी । “मंने तो कालेज में रीटा के प्रेम में पडकर उसकी बेवफ़ाई के बम को गलस करने, उसे भुलाने के लिए पीना शुरू किया था ।” “और आज भी तुम उसी का नाम ले-लेकर पानो की जगह दारू पी रहे हो ।” फिर ठहके गूंज । “तुम क्‍यों पीते हो भाई ! तुम्हारी 'होम मिनिस्ट्री' तुन्हारी इस लत को लेकर बहुत नाराज रहती है । हम दोस्तो को छूट गालियाँ निकालती है, आवारा-वदकार और जाने क्या-क्या कहती-सुनती है। रात को तुम्हे अपने पास फंटकने तक नहीं देती । घर में तुमसे कोई बोलता नही | खाना भी उठकर नोकर खिलाता है और तुम्हारा त्रिस्तर वाहर लगता है।” बृज ने डालू की ओर मुखातित् होते कहा । बात खत्म होते-होते बड़े जोर के कहकहे शुरू हो गये ये । “दाह नही, तो क्या वापड़ा अब दूध पीना शुरू कर दे!” हँसी फिर फूट पडी । बैठक, आधी रात गुजर जाने के बाद ही कही जाकर वर्बास्त हुई ! तब एक दूसरी बैठक शुर्र हुईं। अपने मालिकों-अफसरों की सेवा-चाकरी करने वाले टहुलिये, हाली ओर माली वचे-खुप्रे माल पर टूटकर पड़े, और शीघ्र ही मवाली बन गये थे । सारी धकावद उतर चुकी थी। अब तो वस और ही तलव लगी थी। उधर, इनकी औरतों और बच्चों को हादसो-दुर्घटनाओ, कर्ज, वीमारी, भूप और जलालत के हर वबत के दु.स्वप्नों के दौरे पड़ते रहते हैं । फिर, इस रामय के स्फूर्त चहरे सुबह बुरी तरह अलसाये होगे, मुर्देगी और स्यापा उन पर गहरा पुता द्वोता। 'दाख्डिया' होने के टोहके पड़ेंगे, स्वभाव में चिड़चिड्डापन और व्यवहार में फूहडपन सवालब मिलेगा, और ये लोग अपने कर्तव्य से पनाह चाहते-डोलते फिरेगे। गजर बज उठा / 25




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