नेकीराम की चारपाईयां | Nekiram Ki Charapaiyan

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Nekiram Ki Charapaiyan by जगदीश चन्द्र पाण्डेय - Jagadish Chandra Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीच वी जगह से अदर मिगरंट पीता वह धाफ दिख रहा था। एक बार डौल भुहरिर ने भी देखा--बाहर जलती आग व उन तीना की ओर। फिर उनकी उपेक्षा-्या करता वह सिगरंट की चुस्क्या कुछ एसे भरने लगा, जसे उसने जबने अनुभवों के बल पर अदाजा लगा लिया था कि आमपामस के गाव से कोई, दिलनी व बरली जान वाली साढें छ बजे की बस पकडन वे लालच में जरा जल्दी पहुच गय हाग। क्शोर को दिल्‍ली वाली ही वस पक्डनी थी । अगले दिन उसे दफ्तर पहुचना था। पहले वी जसी बात होती तो रल से जाकर दूसरे दिन बारह यजें तक वह दफ्तर जा सकता था मगर इस इमरजेंसी में तो नहीं, क्योकि झुक महीन पहले पाच-सात मिनट की ही देर होने पर आधे दिन की चह्‌ छुट्टी पर रहचुका था जो कि अब सभव नही था क्योकि इस बार जठ होने चर उस तीन दिन वी छुट्टियो क कटने का खतरा जो था । भला सोमवार के दिन छुट्टी हाने पर दूसर शनिवार व इतवार की सरकारी छूट्टी के भी कटने के कानून को वह रोक तो नहीं सकता था। इमीलिए तो वह इतनी जर्दी यहा पहुच गया था । फिर उसके पिता कय यह स्वभाव भी ती था तो साढें दस वजे बी रेल पकडने सात बजे ही दिल्ली रेलवे स्टेशन पर खड़े होने पर भी बेहद देरी का एहसाम कर उस डाट रहे थे कि तुम दिल्‍ली वाला की लापरवाही का तो भगवान ही मालिक । योज न्‍नाए तो बना डालो आने वाने पच्ासों साला को। मगर खबर यह नहीं वि दस मील स्टशन पटुचन मे ही, बस के कारण तीन घट लगे या चार । इतने से पहल ता मं पटल ही तभी तो वे पाच बजे ही मरोजिनी नगर से चल पड़े थे, जब कि आज वे तीन बजे ही गाव से चले थे। शायद उनवा स्टेरिस्टिक्ल अदाजा, गाव से चुगी चौकी व॑ तीन मोल ही होने के कारण अनुमानत एक ही था । अब किशोर के पिता ने एक और वीडी सुलगा ली। इस बार उहोने दमदा की ओर बीडी नही बढायी। शायद उह यह विश्वास था कि हें अभी बीडी की जरूरत नही है। इतना ही नही, वे दमटा की उपक्षा से बरते टोल मुहरिर को वेवत टकक्‍्टवी बाधे देख रहे थे। क्शोर ने भी देखा उधर को ही ओर । मगर इस पर चौकी वे अदर जलत लप ने उसे दायित्व | 19




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