हिन्दी सतसई परम्परा में दयाराम सतसई | Hindi Satasai Parmpara Men Dayaram Satasai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दपाराम की बहुनता र्डृ
योग, शान और वैराग्य ये तीनो ही नर प्रश्वति के हैं इसलिए माया के
आा्क्पण में फैंस जाते हैं । भक्ति नारी है इसनिए माया उसे लुभा नद्दी सकती
है ।* ज्ञानी को मोस अत्यन्त दुवभ है; भक्त वा भक्ति के प्रताप से सहज मे
भगवान् प्राप्त हो जाता ह । साल््य तो घुणाक्षर याय है 1
श्रुति में परब्रह्मतत्व वो 'नेति नेति! कहकर पुकारा है । दबाराम भो अपने
शुद्धादइंव के अनुसार इसवा समर्थन करते हैं--
श्रुति नेती मरो-अयम, जिगुन अक्षरातीत ।
सो श्रो गोपोदाय को अधिवादन अगनीत ॥ ४
वेदों में ईश्वर को एक मात्र वर्ता हर्ता कहा गया है।णजों कुछ करता
है वही बरता है--उसकी सौला से सब कुछ अस्तित्व म आता है, विरोदित
होता है--यतो इमानि भृतानि जायते, येन जातामि जीवाीत, यत्प्रमन्ति।
सविर्णा त।
दयाराम भी इसी का समर्थन वरते हैं--
श्रीहरि बिन कछु करि हरी; फहूँ सकें नहिं फोय 1
कहि थुति में प्रति का करी, हरि भो गती न होय ॥॥
भ % 3 ६
जो न रुप जयधाम, क्यों समव कर तब्यता ।
एको5ह यहुस।म, भुति निषेध करत न बनें ॥ ३
पुष्टिमार्ग और शुद्धाद्रत के सभी प्रामाणिक अन्धथो था उतवा अध्ययन
विशाल था। उसको सभो, परम्पराआ से वे परिचित थे । पुष्टिमाय श्रतिपादित
भक्ति वा सबल तर्कों से मण्डन करते थे, शकर मत में जीव वो ही भ्ह्य
माना गया है । परतु माया के आवरण के वारण वह अपने स्वरूप को
पहचानने में असमर्थ रहता है । शुद्धाह्त मे जीव और ब्रह्म अलग-अलग हैं।
एक अग है और दूसरा अगी। दोनो एक नहों,हैं एक होने को सभावना भी
नहीं है-- छः
के भयो ब्रह्म तें जोय फिरि, भ्रह्म होय कि सुग्ध ।
ज्यों दधि पयसों होत, सो बहुरि बनें महि दुर्घ ॥
४४४७
१ पोर प्रधान न भक्त दें, स्वामिनों भक्तो होय ।
योग ग्यॉन यराज्य भर दे तदाबित तीय ॥ ३१३
२ व० स॒० दो० ३।
है व० स० दो० २१ और ३३३। ४ बही। छ इ सं० ३४५ #
User Reviews
No Reviews | Add Yours...