काली आंधी | Kali Andhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर बोला--तुम नही जानते गुरूसरन ! इनमें से कितने ऐसे हैं जो काम
विरोधी उम्मीदवारों का करते हैं और रोटियां यहां तोड़ते हैं !
गुरसा तो मुझे भी आया था कि ऐसे हरामखोरों को लात भारकर
फेंक दूं, पर मालती जी से मैंने बहुत-कुछ सीखा था--बही मूल मंत्र--
वक्त | जरूरत ! और जीत ! हर काम वक्त पर करो, जब ज़रूरत पड़े
तब आदमी को या स्थितियों को इस्तेमाल करों और जीत लो मैंने
भडारी को समझा-वुझा दिया था, पर वह गुस्से में इतना ही कहकर
खला गया था कि तो फिर राशन का इन्तज्ञाम करो !
राशन की किल्लत थी, पर अपने प्रमाव और जोर-ज्रवरदस्ती से
हमने पूरा इतज्ञाम कर लिया था । एक कमरा राशन से भरवा दिया
था । इस काम में हमने जग्गी बाबू की मदद भी ली थी | जो कुछ इंत-
जाम वह करवा सके, उन्होंते भी करवा दिया था | खास चुनाव के दिनो
के इन्तजाम के लिए मैंने उनसे कह भी दिया था। उन्होंने हामी भर
ली थी और हमारा एक बडा सिर-दद खत्म हो गया था।
पर चुनाव ऐसी बाहियात चीज है कि सिर-दर्द खत्म नहीं होता,
बल्कि बढ़ता ही जाता है। राशन की कमी इस इलाके मे ही वया, पूरे
देश में है। और ये विरोधी पार्टियोंवाले नम्बरी शैतान लोग होते हैं।
सच पूछिए तो इनका कोई ज्ञमीर नही होता । इन्हे तो बस मौका
मिलना चाहिए और ये हर मोके को हगामे मे बदल देने में उस्ताद हैं ।
पता नही कंसे, उन्हे यह सब पता चल गया *कि हमने काफी राशन
का इन्तजञाम कर लिया है। हमारे यहां आकर खाना खा जाने बाले
उनके गुरगों ने ही खबर दी होगी । एक दोपहर ह॒गामा हो गया | विरोधी
उम्मीदवार चन्धसेन के पक्षघरों ने शहर-भर के फकीरों को जमा करके
मोर्चा भेज दिया । वे आकर चुनाव कायलिय के सामने नारे लगाने लगे--
मालती जी ! हाय हाय !
हम भूसे-नंगे ! हाय हाथ !
मैंने उन भिखम्रगों की भीड को शात करने के लिए एक छोटा-सा
भाषण दिया, चुनाव-अभियानों में शामिल होते-होते इतना तो सीख ही
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