उपनिषदों के चौदह रत्न | Upanishadon Ke Chodah Ratn

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Upanishadon Ke Chodah Ratn by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

Read More About Hanuman Prasad Poddar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अनोसा अतिथि 3 ये ये कफामा डुलसा मत्यलोके स्ोन्कामा*इउन्‍्दत प्रार्थथल । इ्म रासा सरथा सतूयों न छहीदशा लम्मनीया मलुष्ये 1 आसिमत्पत्तामि परिचारयस्व नचिकेती मरण . माहपाक्षी ॥ ( क5० ३१) ११ २५ 'जो-जो भोग गृत्युलेकरमे दुर्लभ हैं, उन सबको तुम अपने इच्छा- बसार मोंग छो। ये रयोंसमेत और वार्यो समेत जो सुन्दर रमणियाँ हैं, ऐसी रमणियों मनुष्योंको नहीं मि्ठ सकतीं । मेरे द्वारा दी हुई हन सारी रमणियों- से तुम अपनी सेवा कराओ, परल्तु, है नचिकेता ! मुझे मरणसम्बधी ( मृत्युके बाद आत्मा रद्दता दै या नहीं ) यह प्रश्न मत पूछो 1? ससारमें ऐसा कौन है जो बिना चाहे 2तनी भोगत्तामग्रियों और उनके मोगनेके छिये दीर्घनीवनव्यापी सामरथ्य प्राप्त झोनेपर भी ढ्नहें नहीं चाहेगा, चुनते ही छार ठपकने लगती है, परन्तु बिचार और वैराग्य- की उच्च भूमिकापर पहुँचा हुआ नचिकेता अठल और अचल है, यप- राजके अलोभनोंका उसके मनपर कोई असर नहीं हुआ। सत्य है---- रमाबितास राम अनुशगी १ तजत बप्नन इंद नर बढसागी॥॥) 'जो बड़मागी रमके प्रेमीजन है वे रणमाके गिणस ( भोगें » को चमनके समान त्याग देते हैं ।! जिसने एक बार विश्वविमोहन मनोद्वर झाँकीकी अनोखी छटा देख ली, बह्द फ़िर विषयोकी ओर मूलकर भी नहीं झौंकवा। नचिकेताने कहा---'है एृत्पो! आपने जिन भोग्य वत्तुओंका | “जनक रहेंगी या नद्दी, इसमें भी सन्देद है | ये मलुष्य-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now