अध्यात्मरामायण | Adhyatm Ramayan

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Book Image : अध्यात्मरामायण  - Adhyatm Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२] बालकाण्ड १५ द्वितीयसगगः भारपीडिता प्ृथिवी का ब्रह्मादि देवताओं के पास जाना और भगवान का उनकी प्रार्थना से प्रकट होकर उन्हें धेयं घारण कराना । पार्वत्युवाच धन्यास्म्यनुग्ृहीतास्मि कृतार्थास्मि जगठ्मभो | विच्छिन्नो मेउतिसन्देहग्रन्थिभवदलुगहात ॥१॥ त्वन्मुखादूगलित रामतच्वामृतरसायनम्‌ | पिबन्त्या मे मनो देव न तृप्यति मवापहमस्‌ ॥२॥ श्रीरामस्य कथा ल्वत्तः श्रुता सहन पतो मया । इदानीं श्रोतुमिच्छामि विस्तरेण स्फुटाक्षरस ॥३॥ श्रोमहादेव उवाच शरण देवि अवक्ष्यामि गुह्मादूमुह्गतर महत्‌ । अध्यात्मरामचरित रामेणोक्त पुरा मम ॥७॥ तदद्य कथयिष्यामि शरण तापत्रयापहम्‌ । यच्छुत्वा मुच्यते जन्तुरज्ञानोत्थमहाभयात्‌ । । प्राप्नोति परमास दि दीर्घायुः पृत्रसन्‍्ततिस ॥५॥ भूमिमारेण मग्ना दशवदनमुखाशेषरक्षोगणानां धृत्वागोरूपमादौं दिविजमुनिजनेंः साकमब्जासनस्य | गत्वा लोक रुदन्ती व्यसनमुपग्त बह्मणे प्राह सब ब्रह्मा ध्यात्वा मुहृत सकलमपि ह॒दा वेदशेषात्मकत्वात ॥६॥ पार्वतीजी बोढीं--दे जगत्मभो ! मैं आपकी कृपा से अनुग्ृहीत होकर धन्य एवं ऋृत-झृत्य हो गयी तथा मेरी सन्देह की ग्रन्थि विच्छिन्न हो गईं ॥ १ ॥ हे देव ! आपके मुख से निःखत्‌ भवभयहारी रामतत्त्वरूपी अम्रत का पान करते हुए मेरा मन ठप्त नहीं होता ॥| २॥ मैं आपके मुख से श्रीरामचन्द्रजी की कथा संक्षेप से सुनी। अब मैं स्पष्ट शब्दों में उसे बिरतृत रूप से सुनना चाहती हूँ ॥ ३॥ महादेवजी बोले--हे देवी ! सुनो, मैं तुम्हें अत्यन्तगोपनीय मेहान्‌ अध्यात्मरामायण को सुनाता हूँ, जिसे पहले श्रीरामचन्द्रजी मुझसे कद्दते थे । ४ | अब मैं तुम्हें तापत्रयहारी अध्यात्मरामायण सुनाता हूँ, जिसके श्रवणमात्र से जीव अज्ञान से उत्पन्न महाभय से छुटकर परस्त ऐश्वय, .दीघोयु और पुत्र पोन्नादि प्राप्त करता है ॥ ५॥ एक समय रावण आदि विविध राक्षसों के भार से दु.खित होऋर प्रथिवी गौ का रूप धारण कर देवता ओर मुनियों के साथ त्रह्माजी के पास बक्वछोक में गयी । ब्ह्माजी के पास जाकर रुदन करती हुई अपनी सारी व्यथा ब्रह्मा जी को सुनायी+ मुहृत्त मात्र ध्यान कर अपने हृदय में दुख की निवृत्ति का सम्पूर्ण उपाय त्रद्माजी जान लिये क्‍योंकि वे अन्तयोमी हैं।६।॥ तत्पश्वात्‌ देवगण सहित पृथ्वी को साथ लेकर ब्रह्माजो क्षीरसमुद्र के तटपर गये और वहाँ अत्यन्त निर्मल आनन्दाश्रुओं से युक्त हो अख़िढ़ छोकान्तयोमी, अजर, सर्वेज्ष, अग॒वान्‌ हरि की अत्यन्त




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