राजेन्द्रकर्णपूर | Rajendra Karn Pur
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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No Information available about रामप्रताप वेदालंकार - Ramapratap Vedalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द
रस है। इन सबसे कविनिष्ठ शिवविषयक भावध्वनि पुष्ट हो
रही है।
श्रव्यात्स” वस्ताण्डवविश्रमेण
मौलौ& विलीना हरिणादूलेखा ।
सा यस्य वामे कुचमण्डलाग्र
कर्प्रपत्राड कुरटद्धूमेति ॥२॥।
ताण्डवनुत्यक्रीडा के कारण सिर की जठाओ में से विलुप्त
हुई वह चन्द्रकला जिन शिवजी के वामस्तन के श्रग्रभाग पर कपूर
द्वारा निमित पत्ररचना की शोभा को प्राप्त होती है वह महादेव जी
आप की रक्षा करें।
टि० :--इस पद्चय में तदगुण अलंकार है। शिवजी जब ताण्डव
नृत्य करते हैं तो उनके सिर पर स्थित अ्रध॑चन्द्र नीचे खिसक कर
(अ्र्धनारीदवर शिव के) बाये मोटे स्तन पर झा ठिकता है। कवि
कल्पना करता है कि वहां वह चन्द्र कपू रपत्र रचना का रूप धारण
कर लेता है | श्रधेचन्द्र की ज्ञोभा एक अलग वस्तु है। कपू रपत्र-
रचना की शोभा उस से भिन्न वस्तु है। यहां,चन्द्र की शोभा अपने
गुणों को छोड़ कर कपू रपत्ररचना के गुणों को धारण करती हुई
बताई गई है भ्रतः तदगरुण अलंकार है। (तद्गुण: स्वगरुणत्यागादन्य-
दीमगुणग्रह: कुव ० १४)। यहां महादेवविश्वयक रत्याख्यभाव ध्वत्ति है।
_अक-ाों मम्कन््यकमसाह>अ्ववमलम्तानालक
#अग्रध्यात्म (ज) $मोले (ज)
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