वाक्यपदीयम् ब्रह्मकाण्डम् | Vakyapadiyam Brahmakandam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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“शब्दतत्त्व की श्रनेक शक्तियाँ दिक, साधन, क्रिया, काल, आदि के रूप में
मानी जाती हैं । उन्हीं के श्राधार पर मूलतः शब्दतत्त्व' के रूप में वह ब्रह्म या
बू् हणशील' तत्त्व एक होते हुए भी भिन्न आकारों या नामों के द्वारा भिन्त-भिन्न
रूप में विभकत-सा माना जाता है । वास्तव में वे शब्दरूप तत्त्वतः एक ही है---
पृथक् नहीं है । किन्तु शक्तियों का चमत्कार यह है कि उनसे उत्पन्न आकार या
भावना भेद के कारण उसकी विविध प्रयोगावस्थाओं को हम पृथक्-पृथक् विद्यमान
मान बैठते हैं ।” [अगले ही इलोक में कालशक्ति का उदाहरण दिया गया है । |
टिप्पणी :--वेदान्त और शैवमार्ग के सिद्धान्तों के श्रावरण में यहाँ भी भतृ -
हरि का वास्तविक वर्ण्य शब्दतत्त्व है, ब्रह्म नहीं । 'शक्ति” के विषय में भरत हरि
अनेकत्र अनेकरूपा शक्तियों की चर्चा करते हैं: काल, दिक, साधन क्रिया, (वा०
३-६-१ के अनुसार ), ग्राह्मत्व-ग्राहकत्व (वा० १-५५), समवाय (३-३-१० ), आदि
उन स्वीकृत शक्तियों में से कुछ हैं। परन्तु, यह अवश्य स्मतंव्य है कि अपने सम्पूर्ण
विवेचन में वे आलंकारिकों द्वारा मान्य शब्दशक्ति की चर्चा कहीं भी नहीं करते ।
स्फोट के अ्रनन््य उद्घोषक होने के कारण वे उन्हें मान भी नहीं सकते थे । अंग्रेजी
में इसके लिए सर्वोचित शब्द 'फोर्सेज़' हो सकता है, पॉवर' नहीं ।
स्मतेंब्य :--यहां 'भिन्त॑ शक्तिव्यपाश्रयात्' और भिन््नश्क्तिव्यपा०' के रूप
में दो पाठभेद उपलब्ध होते हैं। दोनों ही श्रवस्थाओ्रों में मूल कथ्य एक ही रहता है ।
“शुक्तित' के विषय में भत् हरि के विस्तृत विचार पढ़ने के' लिए देखें 'भाषा०
वाक्य०” का अ्रध्याय १३, शब्दशक्ति', विशेषतः अनुच्छेद १६६-७, एवं पृ०
१११, अनु ० ११५॥
श्रध्याहितकलां यस्य कालदक्तिमुपाशिताः ।
जन्मादयो विकारा: षड् भावभेंदस्य योनय: ॥३॥
उदाहरणनेदं पुष्णाति--
“तस्यैव शब्दब्रह्मण: प्रधानतमा हां का कालशक्ति:, तस्येव
पूर्णब्रह्मण: कलारूपेण स्थिताध्ध्याहिता5व्याहता च । तामुंपाश्रित्यैव
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