जीवन - प्रभात | Jivan-prabhat

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Jivan-prabhat by प्रभुदास गांधी - Prabhudas Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ट चौचत-प्रभात सामान का यातायात घुमम होता है। इस रगलस्ी-बन्द रमाहू की भौगोलिक पहत्ता का पठा इस बात से चलता हूँ कि इसी के ठौक सामने प्रात-श्स भीस चौड़ी कच्छ की खाड़ी के उस पार, चछ-राम्य कौ सीमा में भारत सरकार ने भव करोड़ों रुपये रच करके गिस्ास पैमाते पर कादिशा बस्बर का निर्मास किया है भौर उसका शाम गांबीतपर दो है । प्राष्ता है कि सिकट भविष्य में ही बह स्वत स्व5ग्ण सारत कौ दिश्ली के लिए जाम यह बार साबि्ठ होपा घौर भारत के सबसे प्रथिक बल्- ध्ासी ता बन्दरगाह के रूप में गिश्वविक्यात हो बायया। यदि एक जद्माज में बैटकर हम सबसली-बत्दर से 20084 के धमऱी किलारे की परिक्रमा घारम्म करें तो दहं छे पूर्व मे कुछ दूर जाते पर जाम- मगर शाब्य का बेडी-बन्दर प्रा जाता हूँ। सबलली-बत्दर धौर बेडी-बरदर, बोनों हौ कुछ बस्द समुद्र मे 3: इसके बाद कच्छ की साड़ी से बाहर तिकसमे पर खुखे भहासाजर में प्रथम' बस्दर द्वारका के पाप्त का स्‍्ोखा-जग्दर हैं। भारत की पश्चिमी सीमा कौ विदेधियों से रप्ता करने के लिए दीर्जदर्घी भौर रूटनीतिश भी कृष्ण भयवात श प्रायः इसी स्थल को मद री कै कक्‍य म चुता बा। सपा की परिक्रमा करते के सिए जो भह्मज घन से पश्चिम की भोर घाता हूँ झ्रथ एकएम दक्षिय में मुड़ना होता हूँ तब जाकर बह परम-तीर्ष हारका पहुंचता ६ं। हाएका है पाये कर दिषा में गा हुप्रा भाव पज्चीस-तीस मीश पर बहाज अन्दर पहुचता हि जहाँ ऐे पुराने पौएजन्दर राज्प की सीमा धृरू होती हैँ। मियाथौ से फिर करीब पत्रबीस मीछ पाये चल्तन पर पोरबन्दर प्राठा हैँ णो प्राचीन काल से घुदामापुरी के साम से सुत्िक््यात रहा है घौर प्रद सुरीर्ण सविष्य तक उसी प्रकाए बांची-तीर्ष माता जायसा जिस प्रदार टकारा पहृपि इयातादत्ीर्ष मामा जाता है। इसके बाद गौराप्ट्र क्री परिक्ष्मा के लिए, बह्ाज प्राशय दिप्ता म ही बढ़ता जाता हूँ भौर गवीबत्दर, साथबपुर, मांपरोश बेराबत, पौमनाष पांटज प्रौर ड्यू में पहुंचता ईँ। डयू से सौसाप्ट्र का कितारा छोड़कर मदि बहाज को प्ीपा पूर्व में चछ्ताया थाय तो बहू शामते के किसारे पर पुणरात के प्रसिद्ध नपए मृरत में पहुच्रेया भौर पास्तेस दिणा गे कूए मजि्त उप करने पर, सोपारा बाइर या बदई-दन्दर 0 ५६५ चर जायगा। पद गौ पिया करने के लिए डपू सै ईपान में मुइता शा 1 उछस्त में जाफय- बाद धौए महुप्रा बड़े बल्र हं। फिए डे उत्तर में चलने पर पोषा




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