इटली की स्वाधीनता | Italy Ki Swadhinata

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Italy Ki Swadhinata by नन्दकुमारदेव शर्मा - Nandkumar Dev Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तींसरा परिच्छेद ८ ०७ 55. ८2 ० 5 पूर्वदशा का दिर्दर्शन ४॥ (6परक्राप ६४७ 5०४०६ उधा५४ [0 णिए १ ४९, 41 1007 पर19 18ए 117 ता तंधर्श ”--छ85701 संसार में ऐसी फोई जाति अथवा देश नदी है, जिसको काल की कुटिल गति के सामने सिर न क्ुझाना पड़ा हो। या ता समय समय पर सभी देशों का उत्त्यान और पतन होता दा रहता हे, पर यूरोप के देश में काल की कुरिछ गति के जितने थपेद्टे इटली ओर श्रीस* ने पाये हे, कदाचित्‌ उतने वहा किसी अन्य देश मे नहीं खाये हैं। एक समय था कि इटली कौर यूनान उन्नति की चोटी पर पहुँचे हुए थे । इनके बल, पेण्यय्यं और सामर्थ्य को देख कर अन्य देशों का कलेज़ा ददलता था। उस समय इटली और यूनान यूरोप फे अन्य देशों के गुरु थे। अन्य देशों ने विज्ञाप, गणित, काव्य, चित्रकारी, शिल्प, सज्जीत श्रादि आस की दशा पर पुक सहदय कवि के निम्र वाक्य पढ़ने योग्य है -- [1५ ६९०९९ 1 9४1 ॥६॥६९ 1९९०४ 10 1.ण6 50 ०091ए 3४६८ 50 तंढ्वतीए जिए 'एए& 5 0ि ४0पा 15 एत्यांएए पीशरट किसी हिन्दी कवि ने उपयुक्त पथ का हिन्दी भ्जुवाद यह किया ऐ -- “ड्रेस है, पर ग्रीस यह, अब हाय ! प्राशविद्दीन है। है मधुर अर सुघर पर निश्े्ट है प्र छीय हे । सापेक्ष्य इसमे जीव ऐे, पर जीवद्दीव मल्तीन है ।




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