विहारी की सतसई भाग - 2 | Vihari Ki Satasai Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विज्ञ-विहारी-देवका पय प्रत्ताद-अ्क्राथ |
ऊतिताके सुस-पद्मका बढ़ता रह रिमाश ॥
श्री मान् तत्रभवान् परमखुज्ञान कविवर श्रीचिशारीलालज्ञी
अन्धके आदिमें शाखासुमों दित शिए्टसस्प्रदायातुसार
'अपने इण्देवताकी प्राथैवाऊे रूपमें “आशीर्वादात्मक मद्नलाचरण”
फरते हैं । इस बाशीर्वादात्मक महुछाचरणका प्रयोजन अन्धकी
निर्विन्च समाप्तिफे अतिरिक्त यहाँपर यह भी है फि प्रस्तुत भ्रन्थ
( प्रिह्ारों सतसई ) श्टद्भाररस प्रधान है । इसमें श्टड्रार रसके
'अधिए्ठातूदेव श्रीकृष्णजजी और शभ्रीराधिकाजीकी रहस्यफेलियों-
का धर्णन करना है । उससे ग्रव्थकत्ती और पाठकोंका मन,विकार-
को प्राप्त न हो, इसलिये यह आशीर्वादात्मक मड्डलाचरण
किया । इसमें देवविषपयक रति साव ध्वनि है ।
मगलाचरण
१
मेरी भववाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तनकी भाइपरें स्याम हरित-दुति होय ॥
अर्थे--(सोय)--चर पुराणादिपरसिद्ध परदु पकातरा भक्त-
चत्सला ( राधा नागरि )-- नागरोी--भक्तोफि भय दसनेमें परम
प्रयोण- थीराधिकाजी, ( मेरी भयराधा हरी )-- मेरे जन्ममरण
की पीड़ा कौर सासारिक दु खोंको दूर करें| चह शाधाजी
कैसी हैं-... ( ज्ञा तनकी माई परे )--- जिनकी कार्यांकी फान्ति
पइनेसे ् हरित दुति होय) श्रीकृष्णजी दरे--..परसानन्दित---
शोजाते
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