विहारी की सतसई भाग - 2 | Vihari Ki Satasai Bhag - 2

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Book Image : विहारी की सतसई भाग - 2  - Vihari Ki Satasai Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विज्ञ-विहारी-देवका पय प्रत्ताद-अ्क्राथ | ऊतिताके सुस-पद्मका बढ़ता रह रिमाश ॥ श्री मान्‌ तत्रभवान्‌ परमखुज्ञान कविवर श्रीचिशारीलालज्ञी अन्धके आदिमें शाखासुमों दित शिए्टसस्प्रदायातुसार 'अपने इण्देवताकी प्राथैवाऊे रूपमें “आशीर्वादात्मक मद्नलाचरण” फरते हैं । इस बाशीर्वादात्मक महुछाचरणका प्रयोजन अन्धकी निर्विन्च समाप्तिफे अतिरिक्त यहाँपर यह भी है फि प्रस्तुत भ्रन्थ ( प्रिह्ारों सतसई ) श्टद्भाररस प्रधान है । इसमें श्टड्रार रसके 'अधिए्ठातूदेव श्रीकृष्णजजी और शभ्रीराधिकाजीकी रहस्यफेलियों- का धर्णन करना है । उससे ग्रव्थकत्ती और पाठकोंका मन,विकार- को प्राप्त न हो, इसलिये यह आशीर्वादात्मक मड्डलाचरण किया । इसमें देवविषपयक रति साव ध्वनि है । मगलाचरण १ मेरी भववाधा हरो राधा नागरि सोय। जा तनकी भाइपरें स्याम हरित-दुति होय ॥ अर्थे--(सोय)--चर पुराणादिपरसिद्ध परदु पकातरा भक्त- चत्सला ( राधा नागरि )-- नागरोी--भक्तोफि भय दसनेमें परम प्रयोण- थीराधिकाजी, ( मेरी भयराधा हरी )-- मेरे जन्ममरण की पीड़ा कौर सासारिक दु खोंको दूर करें| चह शाधाजी कैसी हैं-... ( ज्ञा तनकी माई परे )--- जिनकी कार्यांकी फान्ति पइनेसे ् हरित दुति होय) श्रीकृष्णजी दरे--..परसानन्दित--- शोजाते |




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