चीन की राज्य क्रान्ति | Chin Ki Rajya Kranti

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Chin Ki Rajya Kranti by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मच्यू शासन में चोत की अवस्था | र्‌६ ४--छोगों की सामाजिक दशा । जिन बाता का ऊपर उल्लेस हो चुड्रा है उनसे ही जनता की सामा- जिक दशा का अनुमान हो सस्ता है । विदेशी शासन में? रहने बाली अजा से यह आशा करनी कि उसकी सामाजिक दशा उन्त हो, भूल है। विदेशी शासकों का मूल उद्देश्य श्रपना, और श्रपनी जाति का, कल्याण रहता है। बढ विजिता का कल्याण वह तर चाहते हैं जहा तक कि स्वयं उनके कल्याण का सम्पादन हो। यही अवस्था चीन में थी। ऐसा बढ़ा देश और ऐसी परिश्रमी श्रणा का नाश दो रहा था क्योंकि जनता के निरूसाह रहने में ही मज्चुओं फा हितसाथन था ? न्यायालय अवश्य थे पर सिवाय बढ़े २ अफ़सरा के ओर कोई मजुप्य सकीरी कानून नहीं। जानने पाता था । ऐसी अवस्था में जैसा कुछ न्याय होता रहा द्ोगा ओर न्यायाधीशों को रुपया कमाने का जैसा बुछ अवसर मिलता रहा होगा वह स्पष्ट ही है । कैरएटन के गवर्नर साहव ने लाडे नेपियर को जो उत्तर दिया था उम से व्यापार का भी अजुमान हो सकता है । गवनमेणएट प्रजा को इतना दबाती थी कि जब कभी सप्नाद्‌ वाहर निक- लते तो लोगों को एथ्वी पर एक दम लेट जाना पड़ता था । विशेष ध्योरे की कोई आवश्यकता नहों है, इतना ही कहना पर्याप्त ह फि प्रजा के जीवन में उनति का पता नहा था, उन्हाने मज्चुओ के आगमन के पादिले जो परिस्थिति ग्राप्त की थी उससे एक पॉव भी आगे न बंढे, वरन्‌ पीछे ही हटते गये । हग, उनमें और विदेशा शासन में रहने वाली अन्य जातियों में केवल एक बड़ा अन्तर था। चान के विदेशी धासक भी एक अकार स्वदेशी हो गये थे, वह चीन में ही बस गये थे और महान्‌ अन्तरों के होते हुए भी विजेता ओर बिजित, शासक और शासित, में वहुत कुछ साम्य हों गया था। दो तीन सा वर्ष साथ रहते २ द्वेप भी कम द्वो चला था ओर मज्चू लोग उतना अत्याचार नहा कर सकते थे जितना हि दूर




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