अनछुये प्रश्न | Anachhuye Prashn

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Anachhuye Prashn by स्वामी अड़गड़ानन्द - Swami Adagadanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सीता-परित्यास [131] मात्र लोकापवाद के भय से वनवास दे दिया! यह अन्याय महर्षि के लिए असह्य था। महर्षि ने साध्वी सीता को संरक्षण दिया। सीता ने लव और कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। महर्षि ने उनके माध्यम से -राम को सबक सिखाने का निश्चय कर उन्हें दिव्यास्त्रों का संचालन सिखाया |-माँ के लाड़-प्यार और महर्षि के कुशल निर्देशन में पल्‍लवित बच्चे दस-ग्यारह वर्षों में ही युद्धकला में निष्णात हो गये। उन बच्चों ने बारहवें वर्ष में राम के अश्वर्मंधेंका वह घोड़ा पकड़ लिया, 'जो उनके क्षेत्र से होकर गुजर रहा था। का ' अश्व की सुरक्षा में नियुक्त शत्रुघ्न और उनकी सेना धराशायी हो गयी। लक्ष्मण का सारा युद्ध-कौशल उन बालकों के समक्ष: धरा रह गया। अतुलित बलशाली हनुमान की अप्रतिहत गति को सींक के एक बाण से निरुद्ध करने वाले भरत बालकों से पराभूत हो गये। रावणः की अजेय लंका का विध्वंस करने वाली अयोध्या की चतुरंगिणी सेना, सुधा-वृष्टि द्वारा पुनर्नीवित वानरी सेना: भी पराजित हो गयी। हनुमान विवश हो गये। सुग्रीव, विभीषण सभी मूच्छित हो गये। स्वयं राम को आना पड़ा। महर्षि को हस्तक्षेप करना पड़ा। उपालम्भ देते हुए सस्मित उन्होंने राम को समझाया, “माना कि राजहठ महान्‌ होता है किन्तु जब बालहठ टकराये तो राजहठ- को पीछे हट जाना चाहिए।” महर्षि से राम का परिचय पाकर बच्चों ने राम से प्रश्न किया कि आपने सती साध्वी, जगत्‌ जननी, अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण देवी सीता को वनवास क्‍यों दिया? राम ने बताग्रा, “बच्चो! वह थी राजनीति।” “राम धरम सरबस ' एतनोई। जिमि मन भाहिं मनोरथ गोई।।” गोपनीयता राजनीति का सर्वस्व है। सीता का परित्याग राम की राजनीति थी। राम इतने बड़े क्षत्रिय सम्राट! वे वाल्मीकि से अस्त्र-शस्त्रों की याचना तो कर नहीं सकते थे। उन्होंने एक युक्ति से वाल्मीकि से वह सब ले लिया। सीता को उन्होंने वनवास का दण्ड नहीं दिया बल्कि बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए भरपूर अवसर प्रदान किया। बच्चों के रख- रखाव के लिए माँ से बढ़कर कौन हो सकता है? राम इस नीति के ज्ञाता थे। “नीति प्रीति परमारथ स्वारथ। कोउ न राम सम जान यथारथ।।” उन्होंने सीता का त्याग नहीं किया बल्कि सर्वोत्कृष्ट विव्यास्त्रों की प्राप्ति और बच्चों की शिक्षा के लिए एक व्यवस्था दी। वस्तुतः सीता कोई नारी नहीं थी। गर्भवती सीता का राम ने परित्याग किया, उसे वन. में निर्वासित किया- ऐसी भी कोई वात नहीं है। यह मानस है।




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