कलेजे के अक्षर भाग 2 | Kaleje Ke Akshar Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हर्षका सागर उमड़ पड़ा
कुछ वर्ष पहलेक्नी बात है--गंगातटपर बसे हुए एक बहुत बड़े
तेंगरमें नवयुवक मित्र गंगास्तान करने जा रहे थे। रास्तेमें उन्हें
कफ्रीचड़में कोई चमकती हुई चीज दिखलायी दी । उन्होंने कौतूहल-
वश कीचड़से उस चीजको निकालकर देखा तो वह बहुत बहुमूल्य
ही रेका हार था--क्रम-से-कम एक लाख रुपये मूल्यका | वे दोनों
स्वयं पहले घनी घरानेके थे, उन्हें हीरों की पहचान थी । उनमेंसे
एक मित्र बहुत अधिक अर्थसंकटमें था। उसने कहा--“भाई .!
मालूम होता है भगवानने मेरी पुकार सुन ली। इसीसे तो यह
बहुमूल्य हार मिला है । आज ही इसे ले जाकर तुड़वा लेंगे और
हीरे बंबई ले जाकर बेच देंगे । हमलोगोंका बहुत बड़ा संकट टल
जायगा ।' दूसरा मित्न भी अर्थसंकटमें था, पर वह बोला, “भैया!
(पराये धतपर मन चलानेसे कभी संकट दूर नहीं होगा । जरा सोचो
[ती, कोई बहिन गंग।स्नानको जाती हुई इसे गिरा गयी होगी, वह
[वर जाकर हार संभालेगी और नहीं मिलेगा तो उसके चित्तको
कितना भारी दुःख होगा । फिर, पराया घन कभी लाभदायक भी
ऐहीं होता तथा वह टिकता भी नहीं । अतएव भैया ! मैं तो घर
गाते ही कपड़े पहनकर किसी समाचार-पत्रके दफ्तरमें जाऊंगा और
उसमें यह सूचना छपवाऊँगा कि 'हमें एक हार मिला है; जिनका
(हीं, वे प्रमाणित करके ले जायें । या इसे मारवाड़ी असोसियेशनमें
जमा करा दूंगा, वे लोग पता लगाकर जिनका होगा, उन्हें दे दंगे।'
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