कलेजे के अक्षर भाग 2 | Kaleje Ke Akshar Bhag 2

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Kaleje Ke Akshar Bhag 2  by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर्षका सागर उमड़ पड़ा कुछ वर्ष पहलेक्नी बात है--गंगातटपर बसे हुए एक बहुत बड़े तेंगरमें नवयुवक मित्र गंगास्तान करने जा रहे थे। रास्तेमें उन्हें कफ्रीचड़में कोई चमकती हुई चीज दिखलायी दी । उन्होंने कौतूहल- वश कीचड़से उस चीजको निकालकर देखा तो वह बहुत बहुमूल्य ही रेका हार था--क्रम-से-कम एक लाख रुपये मूल्यका | वे दोनों स्वयं पहले घनी घरानेके थे, उन्हें हीरों की पहचान थी । उनमेंसे एक मित्र बहुत अधिक अर्थसंकटमें था। उसने कहा--“भाई .! मालूम होता है भगवानने मेरी पुकार सुन ली। इसीसे तो यह बहुमूल्य हार मिला है । आज ही इसे ले जाकर तुड़वा लेंगे और हीरे बंबई ले जाकर बेच देंगे । हमलोगोंका बहुत बड़ा संकट टल जायगा ।' दूसरा मित्न भी अर्थसंकटमें था, पर वह बोला, “भैया! (पराये धतपर मन चलानेसे कभी संकट दूर नहीं होगा । जरा सोचो [ती, कोई बहिन गंग।स्नानको जाती हुई इसे गिरा गयी होगी, वह [वर जाकर हार संभालेगी और नहीं मिलेगा तो उसके चित्तको कितना भारी दुःख होगा । फिर, पराया घन कभी लाभदायक भी ऐहीं होता तथा वह टिकता भी नहीं । अतएव भैया ! मैं तो घर गाते ही कपड़े पहनकर किसी समाचार-पत्रके दफ्तरमें जाऊंगा और उसमें यह सूचना छपवाऊँगा कि 'हमें एक हार मिला है; जिनका (हीं, वे प्रमाणित करके ले जायें । या इसे मारवाड़ी असोसियेशनमें जमा करा दूंगा, वे लोग पता लगाकर जिनका होगा, उन्हें दे दंगे।'




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