भारतीय नारी | Bharatiy Nari

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharatiy Nari by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
स्त्रियों की शिक्षा ०७ २१ ही गौध बनाकर रखा गया है | तुने जिन सब दोषों का उल्लेख किया, वे इसी कारण उत्पन्न हुए हें। परन्तु इसमें स्त्रियों का पया दोष है बता ? सुधारकगण स्वय ब्रह्मचयें-्रत का पालन न करते हुए स्त्रीशिक्षा देने के लिए अग्रसर हुए थे, इसीलिए उसमें इस प्रकार की त्रुटियाँ रह गयी हेँ। सभी सत्कार्यों के प्रवतेको को अभीष्सित कार्य के अनुष्ठान के पूर्व, कठोर तपस्या की सहायता से स्वय आत्मज्ञ हो जाना चाहिए, नहीं तो उसके काम में गलतियाँ मिकलेंगी ही । समझा ? शिष्य--जी हाँ। देखा जाता है, अनेक शिक्षित लडकियाँ केवल नाटक-उपन्यास पढ़कर ही समय बिताया करती हे; परन्तु पूवंबग मे लडकियां शिक्षा प्राप्त करके भी नाना ब्रतो का अनु- (ठान करती हूँ । इस भाग में भी क्‍या वैसा ही करती हैं ? स्वामीजी--भले-बुरे लोग तो सभी देशो तथा सभी जातियो में है। हमारा काम है--अपने जीवन मे अच्छे काम करके लोगों के सामने उदाहरण रखना । तिरस्कार और निन्‍्दा से कोई काम सफल नही होता । इससे तो लोग और भी दूर होते जाते है । लोग जो चाहे कहें, विरुद्ध तक करके किसी को हराने की चेष्टा न करना । इस साया के जगत्‌ मे जो कुछ भी किया जाय, उसमे दोष रहेगा ही--सर्वारम्भा हि दोषेण धूमे- नाग्निरिवावृता:--आग रहने से ही घुआँ उठेगा। परन्तु क्‍या इसीलिए निश्चेष्ट होकर बैठे रहना चाहिए ? नही, शक्ति भर सत्काय करते ही रहना होगा । है जैः रू, मे: “सर्वप्रथम स्त्रीजाति को सुशिक्षित बताओ, फिर वे स्वयं कहेगी कि उन्हें किन सुधारो की आवश्यकता है । तुम्हें उनके




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now