मनोहर विचारों के मनोहर चित्र भाग - 2 | Manohar Vicharon Ke Manohar Chitr Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
499
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाठाकीय निवेदन.
दान का महत्त्व सर्व-विदित है, सर्वे-मान्य है। विश्व का शायद
ही ऐसा कोई धर्म-सम्प्रदाय हो जिसमें दान को कम महत्त्व दिया गंया
हो । दान के पीछे वह करुणा, अनुकम्पा और दया रहती है जिसे लोक॑-
विचा रकों ने “दया धर्म का मूल है” कह कर उसे धर्म का मूल माना है।
परन्तु यह भावना प्राय: सर्वत्र प्राप्त होती है कि “जो बोएगा
'सो पाएगा? अर्थात् मनुष्य यदि कुछ दान करेगा तभी वह आगामी जन्मों
में पाएगा । इतना ही नहीं एक ऋषि ने तो यहां तक कहा है कि---
“सुपात्र-दानाच्च भवेद् धनाढ्य:, धन-प्रभावेण करोति पुण्यम् ।
पुण्य + प्रभावात् स्वर्ग प्रयोति, पुनर्धनाढ्य: पुनरेव भोगी ॥
उचित व्यक्ति या स्थान पर दान देने से मनुष्य धनाढ्य बनता है
'घन से वह पुण्य कार्य करंता है, पुण्य के प्रभाव से व्यक्ति स्वर्ग में जाता
है भौर स्वर्ग से धरती पर श्राकंर बारम्बार श्राने-जाने के क्रम से
घनाढय, दानी श्रौर सुखोपभोगी बनता रहता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि अन्य सभी दानों का फल मनुष्य से
भिन्न अन्य. योनियों में भी उपलंब्ध हों संकता है--अंतः अन्न - दान का
फल स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ अन्य पालत प्राणियों को भी प्राप्त होते देखे
जा सकते हैं। किन्तु विद्या-दान के। फेल केवल मनुष्य-जन्म उपलब्ध
होने पर ही प्राप्त हो सकता है, इसी तथ्य को लक्ष्य में रखकर महा-
मुनीश्वर “विद्यादानं महादानं” का उद्घोष करते हैं ।
विद्यादान के अनेक रूप हैं--विद्या पढ़ाना, स्कूल-कालेज खोलना,
पुस्तकें बांटना, सत्-साहित्य के प्रकाशन में सहयोग देवा और सत्
साहित्य का लिखना। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में विद्यादान के श्रन्तिम
दोनों रूप हमारे सामने हैं । परम श्रद्ध य उपाध्याय श्री मनोहर मुन्ति जी
महाराज ने लेखन-कार्ये किया है श्रौर निम्नलिखित दानी सज्जनों. ने इस
के प्रकाशनार्थ श्राथिक सहयोग प्रदान किया है।
श्री सरदारी लाल कपिल कुमार जेन, श्री श्रोम प्रकाश सुरेश
कुमार जन, तथा श्री सन्त कुमार सुरेन्द्र मोहन जेंवच (मालिक फर्म०
धार० एन० भोसवाल हौजरी फैक्टरी लुधियाना) ने अपने पूृवंजों
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