भीष्म साहनी की नाट्य कला | Bhishm Sahani Ki Natya Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परोश या अभिनयात्मक ढग से काम लिया जाता है । या तो नाटक वे पात्र एव दूसरे
के चरित्र पर प्रवाश डालत हैं या पात्र स्व्य अपने चरित्र का उदधाटन यरते है ४२
21 243 वर्णनात्मक शेली--व्नात्मक शैली मे वात्र प्राय एक दूसर वे
गुपों और विशेषताओं वा वणन वरते दिखाए जात हैं । कला वी दप्टि से यह शली
बहुत हये होती है । श्र प्ठ माटफ्यार इसका अनुगमन नहीं करता ।
21242 नाटफीय शैली--इस शैली द्वारा माटवकार चरित्र का स्पष्ट
करने के लिए बटुत सी युक्तिया वा उपयाग वरते हैं । उनम से तिम्नत्तिपित यूक्तिया
विशेष उल्लय्नीय है--(व) स्वगत भाषण (ये) रगमच निर्देश (ये) वातावरण निर्माण
[प) सापक्षित घरित्र के पात्रों वी अवधारणा (ड) क्रिया व्यापार द्वारा चरित्र
व्यजय्ता ।
अलग-अलग शलिया वा प्रयोग करत समय नाटफकार के लिए यह आवश्यक है
कि जा मुप्य पात्र अवतरित क्िय जाए. उनका चरित्र सरल रैंया मे नहीं रखना
चाहिए। “यह चरित्र अवश्यमेव अत एव प्राहय दोना प्रकार के दवद्वा स सश्लिप्ट
होने चाहिए । क्योवि परस्पर विराधी पात्र की अवधारणा एवं परस्पर विराधी
वृतिया क द्वद्द की सजना से जहा नाटव मे पत्यात्मक बक्रता आती है, वहा पाव क्य
चरिग्र आवगमयी और शक्तिशाली वन णाता है 1 *”
213 त्ञाटय भाषा
भाषा भावाभिव्यकित का सशक्त और महत्वपूण माध्यम मानी णाती है ।
नाटक क्याति दश्य काव्य है इसलिए दश्यत्व की रक्षा हतु जिन भापा श्रयोगों को
अपनाया जाता है उसे माटय भाषा कहा था सकता है । इनम सवादा के अतिरिक्त
शब्ट और वषभूषा तथा वातावरण आदि भाव सम्प्रेपण वा माध्यम वन जात हैं। इसमे
तनिय सदह नहीं कि सवादा का अधिक महत्व रहा है। सवाद तो नाटक का व्लेवर
माना गया है। “नाटव वी भाष वस्तु उसकी आत्मा सवादा के रूप में ही अभिव्यक्तत
हाती है 1४6 यह सही है विः नाटक दश्य काव्य है मगर वह एक एसी भाषा रचना है
जिसम याब्य वे कुछ गुण ता होत है, पर उनवे! अलाया भी बहुत कुछ होता है जो
अभिनय या प्रयोग प्रदशव की आवश्यक्ताआ स नधारित होता है ।
साटत वी भाषा उपयास, कहाती या कविता की भाषा स भिनता रखती है।
“कविता उपयास कहानी आदि श्रव्य वाब्य हान वे. कारण मूलत शब्दों पर आश्रित
है 1 इतका था तम रूप उसके पथ्ठा पर ही है, जय कि नाटया दश्य काव्य है। उसका
असली रूप मच पर है। छप पप्ठा पर ही वह समाप्त नहों होता, बल्कि अभिनेताओं
हारा अभिनीत होन मे ही उठकी चरम परिणति है । नाटक का मूलाधार है कथित
शब्ल | अभिनेताओं के सवाद ही नही उनके अभिनय तथा दश्य सज्जा जादि भी
भावाभिव्यकित मे सहायक होते है । इन सब वा सम्मिलित अथ ही ग्रहण क्या जाता
है (!/
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