कालिदास-ग्रन्थावली | Kalidas Granthavali Tratiya Sanskaran

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Kalidas Granthavali Tratiya Sanskaran by पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शष | # रघुवंश # >.........................्न्‍धन्‍्ततततचा पृत्तस्तुपारैगिरिनिमराणामनोकहाकम्पितपुप्पणन्धी. । तमातपक्लान्तमनातपत्रमाचारएू्त प्दनः सियेवे ॥१श॥ शुशाम बृश्थापि विना दवाग्निरामीठिशेपा फलपुष्पवृद्धिः । ऊन॑ न सच्जेष्यधिको बबाघे तस्मिलवनं गोप्तरि गाहमाने ॥१४॥ संचारपृतानि दिगन्तराणि $त्ता दिनान्ते निलयाय गन्तुम्‌ । प्रचक्रमे पटलबरागताग्र प्रभा पतड्डस्य मुनेश् घेनु॥ ॥१४॥ तां देवतापित्रतिथिक्रियार्थामन्वस्ययौ मध्यमलोकपाल! | बभौ च सा तेन सर्ता मतेन भ्रद्ेव साकाहिधिनोपपन्ना ॥१६॥ से पखलोचीर्णबराहयूथान्यावासबृत्तोन्युसबर्िणानि । ययौ झगाध्यासितशाइलानि श्यामायसानानि बनानिपश्यन] १७) आपीनभारोहहनप्रयत्वाद्गश्गुरुतनहपुपोी. नरेच्र! । उभावलंचक्रतुरण्चिताभ्यां तपोगदाइचपर्थ गतास्पाम्‌ ॥१८॥ वशिष्ठवेनोरसुयायिन तमावर्चमान॑ बनिता बनान्तातू। पपौ निमेपालसपच्मपदिक्तरुपोपितास्यामिव लोचनास्याम॥ १६॥ कारण मधुर स्वर विकल रहे थे ॥१रा पहाड़ी ऋरनोकी ठंडी फुहारोसे लदा हुआ झौर भन्द- मर्द फॉपाए हुए वृक्षोंके फूलोकी गन्पमे वसा हुप्रा वायु उन सदाचारी राजा दिलीपको डक देता चला रहा था जिन्हे छंत्र न होनेके कारण घूपसे कष्ट हो स्हा था ॥१३॥ राजा दिलीप प्रजापालक मे इसीलिये उनके जगलमे पहुँचते ही वर्षोके विदा ही बनकोी श्राग ठडी हो गई, वहांके पेड भी फल्न झौर फूलोंसे लद गए भौर वहाँके बडे जीवोंने छोटे जीदोको सताना भो छोड दिया॥१४॥ दिन दलनेपर नये पत्तोषी ललाईवे सामये ग्रूयंकों ललाई चासे ओर फैलकर सब दिश्वाओकों पवित्र करके भव्य विश्वाम करने लौट चली । उधर लाल रगयी नन्दिनी भी प्रपने घुरोके स्पश्षसे मार्मवों पवित्र करतौ हुई तपोवनकों शोर लौट पडी ॥११५॥ पृष्थीका पालन करनेदाले राजा दिलौप भी वशिष्ठ ऋषिके यज्ञ, श्राद्ध, सतिथि पूजा आदि धर्मके बामोके लिये दूध देनेवाली उस नन्दिनीके पौछे-पोछे लौटते हुए ऐसे भले लग रहे ये जंसे ब्रह्माकी पुत्री खद्धाके साथ सदाचार शोमा देता हो ॥१३॥ राजा दिघीप देखते हुए चले जा रहे ये कि वही तो छोटे-छोटे तालोंमेशे सृप्नरोके कुंड निकस-निरल् कर चले जा रहे हैं, पही मोर सपने वसेरो बी ओर उड़े जा रहे हैं, कही हरिण हरी-हरी घासो पर पककर दैंठ गए हैं और घोरे-धीरे साँफ टोनेसे दनकी सारी घरती घुधली पड़ती जा रही है ॥१६।॥॥ नस्दिनो और दिलीप दोदो धीरे-धीरे चले जा रहे थे । नरिदिवी भ्रपने चनवे भारी होनेसे घीरे-पीरे चल रही थी ओर दाजा दिलोप भारी शरीर होनेके कारण धीरे-धीरे अल रहे थे। उन दोनोवो धोरे-पीरे चलते देखबार तपोवनषा भाग वस देखते हो बनता था ॥१७। बच सौसको राजा दिसीप नस्दिनीके पीछे-प्रीछे लौटे तव सुदक्षिणा प्रपलक नैश्रंसि उन्हे देखतौ




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