भारतीय तथा पाश्चात्य रंगमंच | Bhartiy Tatha Pashchatya Rangmanch

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Bhartiy Tatha Pashchatya Rangmanch by पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ भारतीय तथा पाइसात्य रंगमंच को द्रव्योपार्जन की बातो में, विरागियों को मोक्ष की बातों में, वीरो को बीभत्स, रप्र और युद्ध की बातों में, बड़े-बूढ़ो को धर्म की कथाओं में और चिद्ठानें। को राम प्रफार की सास्विक बातो में आनन्द मिलता है, यहाँ तक वि बाजक, मूर्ख तथा रिमिसी को हैसी-विनोद की बाते सुनने ओौर नटो की वेशभूषा देष गे ही आन्य प्रात्ल हो जाता है। दस आनन्दप्राप्ति का कारण यह है कि प्रत्येक गनुप्य कौ, चाष वह बालक हो या वृद्ध, अद्भूत वस्तु देखने तथा ब्रूररो का अनुकरण कस्ते देसने भे बा रश मिलता है। नाटक का दृश्य होना ही उसका रावसे बडा आकर्षण है, फयोनिः उसे बेब कथा का ही आनन्द नही सिरता वरन्‌ पाव्रौ भौर दृश्यो के द्रारा वह्‌ फथा भी प्रत्यक हो जाती है। कुछ लोगों ने नाटक को केवल उपदेक्ष का साधन माना है। ऐसे अरशिकों की चुटकी लेते हुए 'दशरूपक' के प्रारम्भ मे धनंजय ने कहा है-- आनन्दनिष्यन्दिष रूपकेषु व्पृत्पत्तिमात्रं फलसतपयुद्धिः । घोडपीतिहासादिवदाहू साधुस्तस्त्े नमः रवादुपराझुमुस।य ।। १1६ [जो भला आदमी' आनन्द बरसाने वाले स्कोः (नाटको) फा फठ केषर यी बतलाता है कि इनसे इतिहारा आदि पढ़ो के फल के समान केवल झान शर छता पै, उस अरसिक को दूर से ही नमरकार है। | नन्दिकेश्वर ने तो अपने अभिनयदपंण मेँ नाटय कीः उलात्ति पै प्रस हो भादू के आनन्द को ब्रह्मानन्द भे भी बढ़कर बताते हुए कहा है--श्रह्माजी नै प्रघ्नवेद शे पाञ्च, यजुर्वेद से अभिनय, सामवेद से गीत भौर अथवंघेद रो र्यौ का संग्रह करणै) यह्‌ धम॑, अथे, कामे भौर मोक्ष देनेवाल पफेसा नाट्य-गास्य मनाया, जिनसे कीति, वक्-चातुयं ओर विद्त्ता बढती है; उदारता, स्थिरता, घै और विलारा उत्पन्न होता है; दुःख, पीडा, शोक, असन्तोप भौर जी की जम मिट जाती है तथा ब्रधागरर थे भी अधिक आनन्द प्राप्त होता है) नहीं तो भला ब्रह्मानन्द का अनुभव कर्‌ चुने सामे नारद जैसे बड़े-बड़े देवर्षियों के मन को यह्‌ नाट्य करौ गोहित कर पाता ? यद्यपि मनोरजन ओर आनन्द नाटक का प्रधान और प्रत्यक्ष उदेश्य ३, फिर थी इससे उपदेश भी मिलता है और मन को शान्ति भी, प्सी किए नाद्य को 'पिनोव-जननतं लोके' (संसार में विनोद उत्पन्न करने वादा) बताते रे पूर्व ब्रह्माजी ने साटूस-नेवं का उद्देश्य बताते हुए कह दिया था--'धैय॑, क्रीड़ा, सुख आदि षने वाला यह्‌ नादूग शब रसो, भावौ भौर क्रियाओो कै दवारा समको पपदेक देनेवाला हौया। दुखी, भे दषु, शोकाकुल तथा तपस्वी स्के मत को इस नादय गे परम चान्त कग, चास रो




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