चन्द्रकला नाटिका | Chandrakala Natika

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Chandrakala Natika by प्रभात शास्त्री - Prabhat Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्छ को परतने भर उनता प्रवन बरले में भी विश्वताप जी मी माब्य- 1 प्रयस्त ही पर्पवेछचणों होरर प्रकट हुई है। झौर तायव विभरयदेव मे अभूत-मानस को गति यो भो उन्होंने बडी हो सावधानी से पहिचाना है-- वरप्रकारों कुचकुम्ममूले 2 त॑ तिफ्रय ध्ुतकदु रामे सावंप्यपूरे पिनिम्तपुच्च॑न मे कदाबिद्‌ बहिरेतिं चेतन ।॥ >-प्रयम ।१४ / राजा चद्धकता दी लावए्य सम्पदा पर इस प्रवार भुग्ध हो गया है कि “ने हृदय को उससे विरत करना उसके लिए तितान्त दूर्भर हो गया ! यही “रण है कि घद्धका की किरणें उसके लिए भ्रश्नि-फुरलिंग सा बरसा रही है-- 8 मृगहयत्री से वियुक्त होते वे कारण मेरा हुदय प्रत्मन्त हो सतप्त हो उठा है र यह घद्धमा प्रपनी किरणों के ध्याज से मेरे ऊपर झरित के बसों वी बश्सा रने लगा है! (प्रक २२) | इसके भतिरिक्त तृतीम भ्रक का धत्द १८ औौर तु्धोक का प्रघम छन्द भी (इस विषय का ) काव्यन्सीप्य्य की दृष्टिते ह्लेखनीय है 1 चन्धकला के घोन्दर्य का जो कथत राजा के द्वारा कवि ने किया है, बह स्तुत साहित्यिक-योठक के लिए हृदयावर्जक है-- भ्रसावन्तश्चञ्चद्धिकचनत्र मौलाब्जयुग ल-- स्तलस्फूज॑त्कम्चुविलसदलिसघात उपरि । बिना दोधासद्भ' सततपरिपूर्शाखिलकल कुत प्राप्तश्वद्धों बिगलितकलडू सुमुद्ि ! ते ( ++६११७ ज्ञाथिका के मुख-सौदर्य का वर्णन कवि कितनी तन्मयता के साथ श्रपती सूदम अस्वेपणी दृष्टि से निरखकर कर रहा है--हे सुमुखि | यह लोकोत्तर अद्धाम तुम्हे कहाँ से भ्राप्त हो गया ? इस के मब्य में दो नोल कमल (दो नत्र) शोभा पा रहे है उपके तीचे शख और उसके ऊपर भोरों का दल मेंडरा रहा है (श्याम वर्ण केशराशि] । भर यह्‌ चद्रमा रात्रि के दिना ही समस्त क्लाओ से वर्ण, ज्योतिमान है । इसमे भी मभोहारी वर्णन देखिए--




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