चन्द्रकला नाटिका | Chandrakala Natika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र्छ
को परतने भर उनता प्रवन बरले में भी विश्वताप जी मी माब्य-
1 प्रयस्त ही पर्पवेछचणों होरर प्रकट हुई है। झौर तायव विभरयदेव मे
अभूत-मानस को गति यो भो उन्होंने बडी हो सावधानी से पहिचाना है--
वरप्रकारों कुचकुम्ममूले 2 त॑ तिफ्रय ध्ुतकदु रामे
सावंप्यपूरे पिनिम्तपुच्च॑न मे कदाबिद् बहिरेतिं चेतन ।॥
>-प्रयम ।१४
/ राजा चद्धकता दी लावए्य सम्पदा पर इस प्रवार भुग्ध हो गया है कि
“ने हृदय को उससे विरत करना उसके लिए तितान्त दूर्भर हो गया ! यही
“रण है कि घद्धका की किरणें उसके लिए भ्रश्नि-फुरलिंग सा बरसा रही है--
8 मृगहयत्री से वियुक्त होते वे कारण मेरा हुदय प्रत्मन्त हो सतप्त हो उठा है
र यह घद्धमा प्रपनी किरणों के ध्याज से मेरे ऊपर झरित के बसों वी बश्सा
रने लगा है! (प्रक २२) | इसके भतिरिक्त तृतीम भ्रक का धत्द १८ औौर
तु्धोक का प्रघम छन्द भी (इस विषय का ) काव्यन्सीप्य्य की दृष्टिते
ह्लेखनीय है 1
चन्धकला के घोन्दर्य का जो कथत राजा के द्वारा कवि ने किया है, बह
स्तुत साहित्यिक-योठक के लिए हृदयावर्जक है--
भ्रसावन्तश्चञ्चद्धिकचनत्र मौलाब्जयुग ल--
स्तलस्फूज॑त्कम्चुविलसदलिसघात उपरि ।
बिना दोधासद्भ' सततपरिपूर्शाखिलकल
कुत प्राप्तश्वद्धों बिगलितकलडू सुमुद्ि ! ते (
++६११७
ज्ञाथिका के मुख-सौदर्य का वर्णन कवि कितनी तन्मयता के साथ श्रपती
सूदम अस्वेपणी दृष्टि से निरखकर कर रहा है--हे सुमुखि | यह लोकोत्तर
अद्धाम तुम्हे कहाँ से भ्राप्त हो गया ? इस के मब्य में दो नोल कमल (दो नत्र)
शोभा पा रहे है उपके तीचे शख और उसके ऊपर भोरों का दल मेंडरा रहा है
(श्याम वर्ण केशराशि] । भर यह् चद्रमा रात्रि के दिना ही समस्त क्लाओ से
वर्ण, ज्योतिमान है । इसमे भी मभोहारी वर्णन देखिए--
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