हरिरस | Hariras
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य बदरी प्रसाद साकरिया - Acharya Badri Prasad Sakaria
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)|
दर्शन दिये थे | प्रसिद्ध है कि इनको श्रतुल भक्ति के प्रमाव से
सगवान् रशछोडराय इनके धश्ररस्त परस (बश्ञोभृूत) हो गये थे,
जिससे इहोंने कई ध्रलोकिफ फाम दोन दुल्लियों के दुख निवारणार
कर दिखाये थे*। इसीसे इनका विरुद ईसरा-परमेसरा'
(ईसरदास परमेश्यर स्वरूप है) प्रस्तिद्ध हुश्ना । इतना गोौरयपुर्ण विदद
(१) हरिरस को द्वारका जाकर श्री रणछाडराय को सुनाने की
बात के सबंध में स्व० श्री रामदेवजी चाखानी ने हारका के झपने
पडे से पत्र त्यवहार कया था जिसके विपय में श्री चोखानीजी
क्लकतते मे दिनाफ़ १४-४-५८ के अपने पत्र में प्रस्तुत हरिरस के
प्रकाशन वी चर्चा करते हुए लिसते हैं- “हरिरस' एक बढ़े गौ“व
की चस्तु है श्रत उसका पुन प्रकाशित होना प्रत्यावश्यक है मैंते
हाल में ही सभा (काशी नागरी प्रचारिणी सभा) को इस घन वा
उपयोग करने के लिये जिखा था ।
झापकों यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैंने कुछ समय पहले
श्री द्वारकापुरी के प्रपने पण्ठाजी से महात्मा ईसरदासजी के द्वारका
जाते के विपय में पूछा था जिसका उल्लेख राजस्थान रिसर्च
सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ग्रथ में है। भाषने मुझे जो पत्र भेजा है
उसमे स्पष्ट उल्लेख है वि मन्दिर के दफ्तर मे भी यह वात दज है
कि हमारे महात्माजी वहा गये थे और झपना 'हरिरस' ग्रन्य भगवान
को सुनाया था जिसका समय भी ठहोंने लिसा है।”
(२) ईसरदानी के चमत्कारो की कई दन्त-ऊथाएं प्रचलित हैं,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...