अपरोक्षानुभूति | Aparoksha Nubhuti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका,
००2
प्रातद होकि के लिकाह में पुरुप अनेक दुर्स(प्तं दुःखित रहते
हैं ओर सही चाहतेह कि हमारा दुःख दूर हो जाय इस विप-
पमें विचार यहहे कि संसारके दुःस यणयपि क्षण पढ़ी महाँना
वर्ष इत्य[दि नियमित काठ की ओपध मंत्रादिकोंधेमी दूर होस-
कह परन्तु अत्यन्त नाशकों प्राप्त नहीं हो सक्ते कि मिस
दुःखसागरसे पीछा छूँद क्योंकि मुक्तितो बल्नज्ञानके विना क-
दापिनहीं होसक्ती जेप्ता कि यजुर्ददकी श्रुतिका अभिप्नायहै,
#तमेव,विदिलाविषृल्मेतिनान्य/पर्यावियतें।पनाय उस्न-
पक्ाही साक्षात्कार कर मुक्ति को प्रप्तहोताह अन्य कोई उपाय
मुक्तिक प्राप्त होनेका नहींहे! इसप्रकार संसारकों छेशित देख
“प्रिव्राजकाचाण्पे भीमच्छ करा चाप्प॑ जी” अपरोक्षानृ भूतिना-
मक रचतेशए मिप्तमें संत बेदान्त पक्रिया सरलरीविसे पर्णन
करीहे और इसका संत्कतर्दका्ीहु आ परन्तु ऐसे पुरुप ब-
हुत कम हेतिहें जोकि मूल अथवा संस्कवर्गकाकी समझ सकें
ओरजो समझसकेहे इनकोतो संस्कवर्गकेक! भी कोई कामनू-
हींहे केवल संस्क्ृतका किथिन्मात ज्ञान रसनेवाले सलुरुपेकि
आर्थ इस पुस्तककी सरूप प्रकाशिकानामवाली ज्ञापादीका
अति स्पष्ट बनाईहे इस मेंरे अमकी देस सजनपुरुपोकी अवश्य
आहाद होगा।
श्रीयुत भोलानाथात्त्मज पण्डित रामस्वरूप द्विवेदी,
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