अपरोक्षानुभूति | Aparoksha Nubhuti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका, ००2 प्रातद होकि के लिकाह में पुरुप अनेक दुर्स(प्तं दुःखित रहते हैं ओर सही चाहतेह कि हमारा दुःख दूर हो जाय इस विप- पमें विचार यहहे कि संसारके दुःस यणयपि क्षण पढ़ी महाँना वर्ष इत्य[दि नियमित काठ की ओपध मंत्रादिकोंधेमी दूर होस- कह परन्तु अत्यन्त नाशकों प्राप्त नहीं हो सक्ते कि मिस दुःखसागरसे पीछा छूँद क्योंकि मुक्तितो बल्नज्ञानके विना क- दापिनहीं होसक्ती जेप्ता कि यजुर्ददकी श्रुतिका अभिप्नायहै, #तमेव,विदिलाविषृल्मेतिनान्य/पर्यावियतें।पनाय उस्न- पक्ाही साक्षात्कार कर मुक्ति को प्रप्तहोताह अन्य कोई उपाय मुक्तिक प्राप्त होनेका नहींहे! इसप्रकार संसारकों छेशित देख “प्रिव्राजकाचाण्पे भीमच्छ करा चाप्प॑ जी” अपरोक्षानृ भूतिना- मक रचतेशए मिप्तमें संत बेदान्त पक्रिया सरलरीविसे पर्णन करीहे और इसका संत्कतर्दका्ीहु आ परन्तु ऐसे पुरुप ब- हुत कम हेतिहें जोकि मूल अथवा संस्कवर्गकाकी समझ सकें ओरजो समझसकेहे इनकोतो संस्कवर्गकेक! भी कोई कामनू- हींहे केवल संस्क्ृतका किथिन्मात ज्ञान रसनेवाले सलुरुपेकि आर्थ इस पुस्तककी सरूप प्रकाशिकानामवाली ज्ञापादीका अति स्पष्ट बनाईहे इस मेंरे अमकी देस सजनपुरुपोकी अवश्य आहाद होगा। श्रीयुत भोलानाथात्त्मज पण्डित रामस्वरूप द्विवेदी,




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