संद्धर्ममण्डनम् | Sanddharmamandanam

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Sanddharmamandanam  by तनसुखदास - Tanasukhadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २३ |) बोल २६ या एए ५३ से ५ढ तक मिथ्यारप्टि ( अज्ञानो ) की त्तपोदानादिरूप पारलीकिक छियाए सँसाफ़े हो काएग है। सम्य्दष्टिकी ये ही क्रियाए मोक्षके हेतु हैं। सुयगहाग युत+ १ अ०८ गाधा २३ । २४ बोल सत्ताइसवा प्रष्ठ ५६ से ६० तक मिथ्याहृप्टि ( अज्ञानी ) के घटपटादिज्ञान मी फारण विपय्येय, सब्रन्‍्ध विपरय्यय और स्वरूप विपय्ययके कारण अज्ञान हैं। कर्म विशुद्धिकी उत्कर्पापकर्मको लेकर चौदह गुण स्थान फह्टे गये हूँ सस्यफ्‌ अद्वाढ़ों लेकर नहों | ( समवायाग सूत्र ) बोछ २८ वा पछ ६० से ६१ तक अग्योश्वा केवलीफा विभग जज्ञान, सम्यफ्त्व प्राप्तिका साक्षाव कारण दोने पर भी जय वीतरागढ़ी भाज्ञामे नहीं है तय उसके प्रकृति भद्रता मादि गुण, मो कि सस्य- कन्व प्राध्तिफे परस्पर कारण हैं ये आज्ञाम फैसे हो सफत हैं । बोछ २९ वा ६३ से ६४७ दक भगवती छवक १३ उद्दे शा १ के सूलपाठमे चस्तुम््छपक्ो 'भाननेकी चेष्टा का नाप ईहा ! है । उस छेप्टाफे वाधक कार्णोंड्रों हटा देना “भवोह” हे। सजातीय और विज्ञातीय घर्मफी जाछोचना करनेका नाम क्रमश मार्गण ओर गयेपण हैं अत मार्गण झब्दुफा झिनभाषित धर्मड्री साडोचना और गयेपण अब्दका अधिक धर्मडी आलोचना अर्थ करना जशान दे । बोछ ३० वा पृष्ठ ६४ से ६७ त्तक उत्तराध्ययन सूत्र अ० 3७ गाथा ३१-३२ में विशिष्ट झुफ्ल लेदय,का लक्षण कहा है सामास्य शुस्डऐड्याफा नहीं । जो ध्यान, श्रुव औौर चारित धर्मके साथ होता दे वही धर्मध्यान है । बोल ३१ वा प्रछ ६७ से ६९ तक सम्याटप्ट और मिथ्यादप्टिफो उपमा क्रमण सुगन्ध और दुर्गन्‍्ध घटफी भन्दी सूजकी टीकामें दी दे प्राद्मण मोर भद्जीके घडेकी नहीं । चोछ ३२ वा पृष्ठ ६९ से ७* तक साधुऊो साधु समझ कर उसके निकट आओ तप ओर सुवात्र दानकी आजा मागने चाहा पुत्प मिथ्याद॒प्टि नहों है धस्पाटष्डि है। बोल ३३ वा एृछ४ठ ७० से 3१ तक सूर्याम देव फ अभियोगिया देवताफे मिथ्याहष्टि होनेमें कोई प्रमाण नहीं है।




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