तुलसी - पूर्व राम - साहित्य | Tulasi - Purv Ram - Sahity

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tulasi - Purv Ram - Sahity by अमरपाल सिंह - Amarpal Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमरपाल सिंह - Amarpal Singh

Add Infomation AboutAmarpal Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
राप-साहित्य--स क्षिप्त विवेचन र५ प्राप्त न वर (४ एम कहन व पदचात व विचार फरन ढूग पि इस पा व लिए शावात मैंने बया बड़ डाल्य। उहाने लिप्य से मबहा--अनुप्टप ऊ> मे बेघा और गरु छाघवाटि असरा के वपम्य से रहित और वाद्य पर गाये जान याग्य यह लोक जा जभी भेरा राकावस्था म उच्चरित हुआ ह वह व्यथ नहां हो सकता। अन “तर बल ब्रह्म ने उपस्थित होकर कहा--आपका वह वाक्य इटाज था। मरा इच्छा से ही आपके मुस में यह वाणा प्रकट हुई है। ऋषि सत्तम, घर्मात्मा राम के चरित का जमा नार” से सुना है गात वरिये। ब्रह्मा के चले जाने पर टिप्या सहित वात्मीबि को विस्मय हुआ। रिप्य उनके शठाक का बार बार पाठ करन रण) हएबादस्था मे भहाँय गए शव ही इलाव से परिणत हो गया था। अनतर वामीकि ने टठोबी मे रामक्था निवद का। जनुणएप छद के आविष्वारक वाल्मीबि भाने जात है। सम जतरस युक्त तथा रघुगुर नियमयद्ध जनुप्टप का प्रथम प्रयोग वात्माकि न छोविव कब्य मे कया है। आलिवाव्य के आरम्भ म वाल्मावि' नारद-सवाट ज्रॉँच बंध वाल्मीकि वा शात्र तथा राद से उसको परिणति ब' प्रमण अत्यधिव' मह्त्वपूण हैं। भारतीय वाब्य वे उठगम का यह विधिप८्त स्वरूप निणायव' सिद्ध हुआ । उक्त प्रसंग से रामदाब्य ही नहा समस्त सस्दत वाव्यधारा का टिया निर्दिष्ट हा गयी। आदि बाब्य का सहिमा देवशज्य वे रूप मे नही नरदाव्य बे रूप मे टै। चायव का चपन गुणा वी विशिष्टता के आधार पर फ़िया गया है जिसमे चारित्रण मुख्य हू। वाल्माकि ने नारत से पूछा था-- चारित्रण च का युक्त जौर नारद पे उत्तर टिया ५.ै+मा निपाल प्रतिष्ठा त्वमगम भाश्वता समा । सल्लौचमियुनारेव्मवधी वाममाहितमू। (वा० रा० ९१ २ १५॥) २-+पाटवद्धोशरसमस्ततशीटरय सर्मावत । शोशातस्प प्रवत्तो मे डोक्ो भववु नायथा॥ (वहा १२ १८)। ३०-जोदर ए३ त्वमगा बढ़! लाभ वाया विचारणा) मच्छटाटेदव ते ब्रह्मप्रवत्तेय सरस्वता॥ रामस्प चरित शतलन वूरू स्वमपिसत्तम। घरम्ोात्मगी गृणतता छोतर रामस्यधीमत'॥ वत वथय वीर्य थया ते नारटाचऋ नम्‌। गहस्प थे प्रवाश उल. पादत तरप घीमतः समाषरत्णपुमियाल गीता महपिणा। सामुस्याह्र्घाइभूयन शोर इहाएजमाया ॥(बवहा १२३१ ४०)।॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now