हिन्दी कथा साहित्य और उसके विकास पर पाठकों की रुचि का प्रभाव | Hindi Katha Sahity Aur Usake Vikas Par Pathkon Ki Ruchi Ka Prabhav

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Katha Sahity Aur Usake Vikas Par Pathkon Ki Ruchi Ka Prabhav by गोपाल राय - Gopal ray

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गोपाल राय - Gopal ray

Add Infomation AboutGopal ray

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
्‌ परठने*चि और उससे निधारक तत्त्मे प्रतोष रुचि कुछ हु तक जमजात्र गुणा पर, जा अधिवतर भागवात्मव' काटि के हाते हैं, आधारित होती है ; पर मनुष्य म॑ विभित प्रवार वी रवियों का उदय और विकास सुद्यत अनुभव, शिनण तथा आपष्टनगन हेतुआ के! कारण सम्भव होता है। उदाहरणत शिसी बाल बजाहार के भन मे खिलौन बनाने वो रवि तभी उत्पल हां सक्‍ती है, जेवकि उसमे इतनी काय दशता हा हि उसका बाय उसके सहय्मिया तया स्वयं उसके सते के हिए भी सातायप्रल हो । पदि बाद बाल बाजार स्वयर्निमित खिलाव थी धुछता अपने समवयली हाट निर्भित्त खिलौनों से 4रला है. आर उनरी तुलता मे जपने काय क1 निम्वतर पाता है. तो अपने माता पिता या जधिभाववा द्वारा शाप प्रत्माहित क्यि जाने पर भी खिटौसा बनाने से उसकी दसि बनी नहीं रह सवती । इसी प्रतार थटि राई छाम ज-मजात गुणों, यानी प्रतिमा और वृद्धि, के अभ्ाद हे बारम परीला मे बार बार जनुनीण होता हैं ता, मातापिता का अधिकतम प्रोत्लाहम भी उसमे पठनरवि जागुते नहीं वर सस्ता। इसके विपरीत थदि दिसी छात्र थी साहित्य में अ्चिदृत्ति (800४:एव€ ) है, पर वदपन से ही वह एस व्यवितिया के बीच रहना है, जा वैज्ञानिक हैं, और सवत्त वचानिक चचा किया करते है, का उप्त छात्र म भी विज्ञान के प्रति इचि का उत्पन हा जाना स्वाभाविद सौर सम्भव है। इसी प्रसार खिलौना बनाने मे अभि वृत्ति ( 89010ए006 ) रखनवादे बाठ बलाक्रार के सहक्रीटक यरि पठन में रुचि रखनेवाति हैं ती उससे भी पठनरुति व्यू वित सेत्र है याता असम्भव सठी है । इससे पता चलता है कि यद्यपि किसी विधेष रुचि के उत्पन्न हले के लिए ब्यवित म॑ तद्विययक नधगिर बाग्यता और प्रेस शक्तियां ( ि00ए810याक्ा 07068 ) वो पिद्यमाव रहता आवश्यक है, पर रुचियो दा यतय और विक्रस मुरयत सामाजिक और सास्कृतिक हलुओं द्वारा ही निवारित हाता है । अत मनेविनातिता की यह मायता बिलकुर सही है कि बच्पि शपियाँ, आन्तरिकत अतर्वाति गुणा को जभिव्यक्षि हाती है, पर जिन विश्वेय सपा में थे अभिव्यक्त्र हनी हैं, थे आवए्ठदात हृतुआ द्वारा तिर्मीत शत हैं | इस प्रशार एव. रूटका, जिसकी बुद्धि कौर स्मरण गकित अच्छी है, वविया, शहाताताय तथा उपायायरारों की कृतिया पहपर बार बार इतम से एक बनने वी इच्छा वरबत बर सत्ता है । बह कविता बहानी या उपायातध लिखने का प्रथत्त भी भार सकता है, शियु यति उप्के द्वारा रचित कविताओं चेहानिपों या उपयासा का छा प्रणसा पही कर1, ता निश्वय ही इस विधया से उसकी रुधि समास्त हा जाएगी । सम्भय है वि जाम क समम एफ वढि और अभियता के जामगात गुणा मे असल्य अन्तर रहा हा, पर विभिन्न वातावरणा के सम्पक मे वे विभिन्न खिशाला मे अग्रसर हाते है और दोना म एक दूपरे में सवया भिन्त रंचिया वा विशास हा जाता है । कुछ रचियाँ गेशा हती हैं जितही पूति के र1ए अन्तर्जात गुण ही पर्थात हात हैं, अवत़ि कुछ अप रुचिया वी थूनि वे लिए झन्तर्चात गुणा दे साथ साथ प्रशिषण भी अनिवाय होता है उशहरणत सिनेमा देखना आटीद था साहस और रामासप्रषान वहानियाँ पटना अथवा रंडिया से प्रमारित हाते बारे सस्ते गीत सुनता--ये ऐसी शवियाँ हैं. जिनके लिए बहुत कस, या नहा वे बदावर, प्रशिवण को आवश्यव॒ता पड़ती है । ये रचियाँ प्रयलत सहज भावनात्मक हवुआ पर आयारिति होती हैं। इससे विपरीत चलने काण्न (व >पुश्स) या स्वैत्तियी [िटिकस) में रुचि है। दूमरे मे जहाँ विशेषीक्ठत माम्मता और दौध प्रशिषण आवश्यव है,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now