राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज भाग - 1 | Rajasthan Men Hindi Ke Hast Likhit Granthon Ki Khoj Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ 1]
में भी वे सोल का कार्य करना चाइते थे, पर उनकी यह इच्छा फलवती नहीं हुई ।
दिंदुस्वान के उष्ण जतबादु तथा सोज के कठित परिश्रम के कारण इनका
स्वास्थ्य दिन-दिन गिरता गया और अंततः सं० १६७४ में केवल ३० बे की अल्पायु
में उनका देद्दान्त हो गया।
डा० टैसीटरी एक विदेशी विद्यान थे और डिंगल उनऊे लिये एक बिल्कुल दी
नई भाषा थी। फिर भी वहुत थोड़े द्वी समय में उन्होंने इस भाषा को सीख लिया और
इसकी विशेषताओं से परिचित हो गये । शोध के काम को वराघर जारी रखते हुए
इन्होंने ढिंगल के कुछ मंथों का संपादन किया और अनेक हस्तलिखित प्रतियों के
विवरण तैयार किये जिनको वंगाल की एशियाटिक सोसाइटी ने पुस्तकाकार तीन
भागों में प्रकाशित किया हैं ।
संपादित भ्रन्थों के नाम ये हैं:--
(१ ) छंद राउ जैठसी रउ
(२) बुचनिका राठौड़ रतनभिंदनी री मद्देसदासोत री
(३) वेलि क्रिसन रक््मणी री
उल्लिसित् तीनों ग्रन्थों फे प्रारंभ में टैमीटरी मद्दोदय की लिखी हुई भूमि
काएँ हैं जिनमें उतके रचयिताओं की कविता, भाषा शैली आदि की बड़ी मार्मिक
और विद्तापूर्ण आलोचना की गई है। कनेल टॉँड के बाद डा० टेसीटरी दूसरे ऐसे
विदेशी ब्िद्वान् यहाँ आये जिन्होंने डिंगल सादित्य का अध्ययनफर उसकी ऐपि-
हासिक तथा भाषा-विज्ञान संबंधी विशेषताओं को पाश्चात्य बिद्वानों फे सामने रखा
ओर उसको प्रतिष्ठा बढ़ाई । बस्तुतः भारतीय वाइमय में आज डिंगल साद्दित्य को
थोड़-बहुत ज्ञो भी गौरव का स्थान मित्ञा है, इसे बहुत कुद डा० टैसौटरी के परिश्रम
और लेखन-चातुर्य्य दी का फत्त समझना चादिये ।
(४ ) सुशी देवीप्रसाइ-ये गौड़ जाति के कायस्थ थे । इनका जन्म सं०
१६०४ में अपने नाना के घर लयपुर में हुआ था ) इनके पिता का नाम नत्यनलाल
था। सोलइ वर्ष की आयु में मुंशी जी पहले पदल टोंक रियासत में नौकर हुए जहाँ
इन्दोंने १४ वर्ष तक नौकरी की | लेकिन बाद में हिन्दुओं के द्विस्त की रक्ता के प्रयत्न
में इनकी टोंक के मुसलमान अधिकारियों से अनबन हो गई जिससे इन्हें उक्त रिया-
सत को छोड़न। पड़ा । टोंक से ये सीघे ज्ञोघपुर चले गये । चहाँ इन्होंने कई वर्षों
तक मु मिक्त का काम किया और मदु मशुमारी के महकृमें पर भी रहे । वहीं स०
१६८० में इनका देदावसान हुआ |
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