तलाक का मुकदमा | Talak Ka Mukadama

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Talak Ka Mukadama by स्वदेश कुमार - Svadesh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मत्रिवेदीजी : यही तो मैं इतनी देर से बहेर हा < ९६ सालाजी : खाक कह रहे हो इतनी देर से ! - | हे अि। ठाकुर साहब : हा, त्रिवेदीजी । बात तो आपकी भव तक मेरे पल्‍्ल भो नहीं पड़ी । त्रिदेदीजी : तो सुनिए, ठाकुर साहब । सुना है इस खाली प्लेट में एक किराएदार आ रहा है। ठाकुर साहब : गह तो बड़ी खुशी की बात है । रोनक बढ जाएगी । सालाजी : और क्या ! तिवेदीजी : मालूम भी है इस फ्लेंट में आ कौन रहा है ? ठाकुर साहब + कौन ? विवेदोजों + एक कदूत । लालाजी : (चौककर) है! ठाकुर साहब : (गुस्से भें) क्या कहा ? जिवेदीजी + जी, हां। में ठीक ही फह रहा हैं। हमारा नया पड़ोसी एक अछत है। लालाजी : (गुस्से में) यह नही हो सकता । ठाकुर साहब : मैं यह कभी नही वरदाश्द कर सकता। जब मैं राजपुर का जमींदार था तो गाव के किसारे पर बने कुएं के! आसपास भी कोई अछूत मेरी बंदूक के डर के मारे नहीं फटक सकता था। आज मेरी जमीदारी छीन ती गई है तो इसके माने यह नही हुए कि मैं एक अछूत को अपना पड़ौसी बन जाने दू ! लाताजी त्रिवेदीजी लालाजी : भघ्रिवरीजी अची.म सकल 1 रथ पड्िल १७ : ठाकुर साहव, बात तो आपकी सवा सोलह आने सो है। लेकिन आज के जमाने में बदूक से अछूतो का शिकार करना बड़े खतरे का काम है। * तो क्या, लालाजी, अपना धर्म भ्रष्ट हो जाने दें ? नही, तजिवेदीजी, यह मैंने कब कहा ? धर्म ही अ्रप्ट हो यया तो फिर बचा ही क्या ? में तो यह कह रहा था कि कोई ऐसी तरकरीव निकालो कि साप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। ४ तो फिर क्या किया जाए? आजकल तो हमारे श्राप भी घास-




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