पुनर्नवा एक सांस्कृतिक दस्तावेज़ | Punarnava Ek Sanskritik Dastavej
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शालिनी मूलचन्दानी - Shalini Moolachandani
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इन्हीं सामाजिक मूल्यों का प्रामाणिक दस्तावेज है।
प्रेम समस््या- न्
'पुनर्नवा उपन्यास मूलत: नर-नारी के सम्बन्ध सूत्रों की समाज द्वारा की
गई व्याख्या है। द्विवेदी जी सामाजिक मर्यादाओं के भीतर आदर्श प्रेम का स्वरूप
प्रस्तुत करते हैं। स्त्री-पुरुप का पारस्परिक आकर्षण उन्हें प्रणय सम्बन्धों में बांध
देता है। यह प्रणय आत्मसमर्पण पर स्थित होकर अपने आदर्श रूप को प्राप्त होता
है। समाज इन सहज स्वाभाविक प्रणय सूत्रों को मर्यादा, धर्म व न्याय का आश्रय
लेकर वहीं दबा देना चाहता है किन्तु यह प्रणय सामाजिक अवरोध का ईंधन पा
प्रज्ज्वलित हो घधक उठता है। उसकी इस अनि में धर्म, न्याय व नैतिकता के थोथे
प्रश्न भस्म हो जाते हैं व उनका निश्छल, पवित्र व उदात्त रूप 'निखर उठता है।
प्रेम के विविध रूपों व स्तरों को पुनर्नवाकार चित्रित करता चलता है। पुरुष
के समक्ष नारी के तीन रूप-गणिका, प्रेमिका एवं विवाहिता कुलवघू के रूप हैं-यथा
विविध पात्रों के माध्यम से देवरात-शर्मिष्ठा, देवरात-मंजुला, गोपाल आर्यक-मृणाल,
गोपाल आर्यक-चन्द्रा, चारूदत्त-घूता, चारूदत्त-बसन्तसेना, शार्विलक-मांदी,
माढव्य-ब्राह्मणी, चन्द्रमौलि-राजदुहिता प्रणय के ये विविध रूप विविध मन. स्थितियों
व परिस्थितियों की देन है तथा प्रणय के सामाजिक स्वरूप का निदर्शन करते हैं।
तृप्त व अतृप्त प्रेम का वास्तविक स्वरूप इनमें दृष्टिपोचर होता है। नर-नारी का
पारस्परिक आकर्षण कभी स्थूल भौतिक रूप के प्रति होता है तो कमी मानसिक तृप्ति
के प्रति होता है। पुनर्नवाकार ने प्रेम के भौतिक व बौद्धिक दोनो ही रूपो को प्रस्तुत
किया है। उनका यह वैशिष्टय उनकी सभी कलाकृतियों में झलकता है। प्रेम आत्मनिष्
व स्वार्थी न होकर उतरोत्तर उदात्त रूप ग्रहण करता हुआ विश्वास में लीन हो जाता
है। प्रणयी अपनी आत्मनिछता को सामाजिक उपादेयता के-निमित्त त्याग देता है और
समष्टि सुख के लिये प्रयत्नशील होता है। '
देवरात-शर्मिष्ठा का प्रणय दाम्पत्य-रति का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
देवरात-शर्मिष्ठा का प्रेम साहचर्यजन्य प्रणय है। देवरात का विवाह माता-पिता द्वारा
तय किया गया था ““शर्मिंष्ठा, रूप, गुण, शील में सचमुच शर्मिष्ठा थी। देवरात ऐसी
पत्नी पाकर कृतार्थ हो गए। दोनों का प्रेम बहुत प्रगाढ था। प्रजा में देवरात और शर्मिष्ठा
राम-जानकी की भांति श्रद्धा, प्यार और विश्वास की दृष्टि से देखे जाने लगे।”* अस्तु,
देवरात-शर्मिष्ठा का प्रेम दाम्पत्य रीति का अनुपमेय उदाहरण है। समाज इस प्रणय
को मान्यता प्रदान करता है और इसका उदाहरण मर्यादा के निर्वाह हेतु दिया जाता है।
ह देवरात-मंजुला का प्रणय सम्बन्ध देवरात के निमित्त क्षतिपूरक रूंप मे है।
मजुला हलद्वीप के छोटे नगर की “नगरश्री” है। वह अपने सौन्दर्य, आचरण, कला
एवं स्वाभिमान के लिए प्रसिद्ध है। देवरात अपनी पत्नी शर्मिप्ठा के देहावसान होने
पर मजुला में उसका आमास पाते हैं और शर्मिष्ठा के प्रेम की तृष्णा को मंजुला
User Reviews
No Reviews | Add Yours...