धम्मपद | Dhammapad

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Dhammapad by अवध किशोर नारायण - Avadh Kishor Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुष्फवग्गो श्३ जैसे रुचिर ओर वणयुक्त ( किन्तु ) गंघरहित फूल है, वसे ही ( कथनानुसार ) आचरण न करनेवाले की सुभाषित वाणी भी निष्कर है। ७५२-यथापि रुचिरं पृष्फं॑ वण्णवन्ते संगन्धर्क । एवं सुभासिता वाचा सफला होति कुब्बतों ॥ ९ ॥| ( यथापि रुचिरं पुष्प॑ं बणवत्‌ सगन्धकम। एवं सुभाषिता चाकू सफला भवति कुचतः ॥ & ॥ ) जैसे रुचिर ओर वर्णयुक्त गन्वसदित फूल होता है, वेसे ही ( चचन के अनुसार काम ) करनेवालेकी सुभाषित वाणी सफल होती है। आवस्ती पूर्वाराम विशाखा ( उपासिका ) ७३-यथापि पुप्फरासिम्हा कयिर मारागुणे वहू | एवं जातेन मच्चेन कत्तव्य॑ कुसरूं बहुं॥ १० ॥ ( यथापि पुष्पराशेः कुर्यात्‌ मालागुणान्‌ वहन । एव जातेन मत्त्यन करक्तव्यं कुशल बहु॥ १०॥) जैसे पुथ्पों की राशि से कोई अनेक साला की लड़ियां बनावे, वेसे ही जन्म ले कर सलुष्य को जनेक पुण्य करने चाहिए । - आ्लावस्ती आनन्द ( भेर ) ज्‌४-न पुप्फान्धी.. पटिवातमेति न चन्दन तगरमछिका वा। सतद्च गन्धो पटिवातमेति सन्‍्या दिसा सप्पुरिसों पवाति॥ ११॥




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