धम्मपद | Dhammapad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुष्फवग्गो श्३
जैसे रुचिर ओर वणयुक्त ( किन्तु ) गंघरहित फूल है, वसे ही
( कथनानुसार ) आचरण न करनेवाले की सुभाषित वाणी भी निष्कर है।
७५२-यथापि रुचिरं पृष्फं॑ वण्णवन्ते संगन्धर्क ।
एवं सुभासिता वाचा सफला होति कुब्बतों ॥ ९ ॥|
( यथापि रुचिरं पुष्प॑ं बणवत् सगन्धकम।
एवं सुभाषिता चाकू सफला भवति कुचतः ॥ & ॥ )
जैसे रुचिर ओर वर्णयुक्त गन्वसदित फूल होता है, वेसे ही ( चचन
के अनुसार काम ) करनेवालेकी सुभाषित वाणी सफल होती है।
आवस्ती पूर्वाराम विशाखा ( उपासिका )
७३-यथापि पुप्फरासिम्हा कयिर मारागुणे वहू |
एवं जातेन मच्चेन कत्तव्य॑ कुसरूं बहुं॥ १० ॥
( यथापि पुष्पराशेः कुर्यात् मालागुणान् वहन ।
एव जातेन मत्त्यन करक्तव्यं कुशल बहु॥ १०॥)
जैसे पुथ्पों की राशि से कोई अनेक साला की लड़ियां बनावे, वेसे ही
जन्म ले कर सलुष्य को जनेक पुण्य करने चाहिए ।
- आ्लावस्ती आनन्द ( भेर )
ज्४-न पुप्फान्धी.. पटिवातमेति
न चन्दन तगरमछिका वा।
सतद्च गन्धो पटिवातमेति
सन््या दिसा सप्पुरिसों पवाति॥ ११॥
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