संस्कृत धातु कोश | Sanskrit Dhatu Kosh

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Sanskrit Dhatu Kosh by काशीनाथ सिंह - Kashinath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६९) इस कोशम सब सस्क्ृत धातुआँका अर्य सरठ हिदीमापामें लिखा हे अत्येक धातुके आगे गणबोघक अक), पदवोधक अक्षर तथा वर्तमानका- छिक तृतीय पुरुषफ़ा एकवचनी रूप लिखके उसके आगे आजकल उस घातुके जितने अर्थ प्रसिद्ध है वे सब छिखे है जिन घातुजीके अर्थ उप सगे जोडनेसे भिन्न २ होते है उनको वैत्तेही उपसर्गस॒हित लिखे उनके सब भिन्न २ अर्थ लिखे है आखिर परिशिष्टम घातुरूपावलि दी है जिसमें इक्कीस धातुओँके दशं रफारोंके रूप लिखे है और थोडेसे उप युक्त प्रथमगणस्थ तथा हितीयगणस्थ धातुओंकेमी दृशो ल्कारोके अथम प्ररुषके एक्वचनी रूप लिखे है, तथा कर्मण जैसे दा घाहुका दीयते-दिया जाता है, णिच््‌ जैसे दा घातुफा दापयाति-व्शिता है, सन्नत जैसे दा धातुका दित्सति-देनेकी चाहता है और यडढत और यद्वहुगत जैसे दा धातुका देदीयते, दादेति-वारवार देता है, येभी रूप ढिखें है उपयुक्त सद धातुओंके ऐसेही रूप देनेका विचार था परतु ग्रव चढ़ जानेके सबब वैसा नही किया गया इस कोशमे प०-परस्मैपदी, आ०-- आत्मनेपदी, उ०-उमयपदी, प्र०-प्रयोजक, सौ०-सौत्र वे*-बेदिक इस प्रकार पूर्ण शब्दके छिये एक २ अक्षर उपपुक्त किया है. जिन धातुओआके आदिम प और ण है ऐसे घातु सफारादि तथा नका णादि लिखे है और धातुओके अनुबधमी नहीं छिखे हे क्योकि इस पुस्तक इनका कुछ अयोजन नहीं है, इनका विशेष मयोजन कोमुदी सीखनवालोको है अस्तु, यदि इस पुस्तफ्से विद्यार्यियाँकों कुछभी * ल्म होगा तो में अपना परिश्रम सफल समझूगा आखिरमें सब सज्जन ठोगोौस मे सविनय यही प्रार्थना करता हू कि इसमे कहा अमवशसे गणमें पदमे, अर्यमे या उपसमगेंके क्रममे गलती हो गई हो तो क्षमा करके मुझे उपकृत करें इति शम्‌ सज्नकृपामिठापी- काछे इत्युपाव्ह काशीनाथात्मज गणेश्नश्म्मों-




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