नीतिशतकम | Neetishatakam

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Neetishatakam by तारिणीश झा - Tarinish Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( (९८ ) दुष्दान्तः पुनरेतेयां सर्वेधां प्रतिविम्बनर ॥ (काव्यत्रकाश १०1१०२) भतु्‌ हरि के नीतिशतक से इसका उदाहरण यह है-- अधिगतपरमार्यान्‌_ पण्डितानू_ मावमंस्था- स्तृुणमिव लवुलक्ष्मोनेंव तानू. संद्णद्धि । झभिनवमदलेलाइयामगण्डस्वत्एनां से भवत्ति वित्ततन्तुर्वारण॑ दारणानाम ॥ (नीतिजञतक १४) यहाँ पण्डित जन और मदमत्त हाथी की स्थितियों का विम्दप्रतिविम्ब भाव होने से दुष्दान्त अलंकार है। (६) परिसंस्या--प्रलंकार कहते है, जहाँ प्रश्न के साथ या बिना प्रश्न के कुछ कहा जाय और वह उसी के किसी वस्तु के निषेध के लिए हा 1 इचका लक्षण है--- किब्न्चित्‌ पृष्ठमपृप्द वा कथित यत्‌ प्रफत्पते । तादुगन्पव्यपोह्याय परिसंस्या तु सा स्मृता 11 (काव्यप्रकाश १०1११६) नतू हरि की सूक्तिययों में इसके कई उदाहरण हैं । जैसे--- लोनइ्चेदगुणेन कि पिशुतता यद्यस्ति कि पातकः 1 सत्य चेत्तपरता च कि शुद्धि मनो यद्यस्ति तीर्येन किम्‌ ? सोजन्य यदि कि बलेन महिमा यद्वस्ति कि भण्डनः सद्दिद्या यदि कि घरनेरपय्शो यद्स्ति कि जृत्युना 1 (नीतिशतक ४५) यहाँ प्रश्न-पूर्वंक लोन, पिशुनता आदि का निवारण किया गया है--- (७) अर्वान्तरन्यास-इस ग्रलंकार का प्रयोग मत हरि की नूक्तियों में कई स्थलों पर हुआ है | शबर्थान्तरन्यात्॒ का लक्षण है-- सामान्य विशेषों दा तदन्येन समधथ्यंते 1 यक्तु सोउर्यान्तरन्यासः साथम्येंगेव्रेण वा ॥॥ (काव्यप्रकाद १०११० €)




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