नीतिशतकम | Neetishatakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( (९८ )
दुष्दान्तः पुनरेतेयां सर्वेधां प्रतिविम्बनर ॥ (काव्यत्रकाश १०1१०२)
भतु् हरि के नीतिशतक से इसका उदाहरण यह है--
अधिगतपरमार्यान्_ पण्डितानू_ मावमंस्था-
स्तृुणमिव लवुलक्ष्मोनेंव तानू. संद्णद्धि ।
झभिनवमदलेलाइयामगण्डस्वत्एनां
से भवत्ति वित्ततन्तुर्वारण॑ दारणानाम ॥ (नीतिजञतक १४)
यहाँ पण्डित जन और मदमत्त हाथी की स्थितियों का विम्दप्रतिविम्ब भाव
होने से दुष्दान्त अलंकार है।
(६) परिसंस्या--प्रलंकार कहते है, जहाँ प्रश्न के साथ या बिना
प्रश्न के कुछ कहा जाय और वह उसी के किसी वस्तु के निषेध के
लिए हा 1 इचका लक्षण है---
किब्न्चित् पृष्ठमपृप्द वा कथित यत् प्रफत्पते ।
तादुगन्पव्यपोह्याय परिसंस्या तु सा स्मृता 11
(काव्यप्रकाश १०1११६)
नतू हरि की सूक्तिययों में इसके कई उदाहरण हैं । जैसे---
लोनइ्चेदगुणेन कि पिशुतता यद्यस्ति कि पातकः 1
सत्य चेत्तपरता च कि शुद्धि मनो यद्यस्ति तीर्येन किम् ?
सोजन्य यदि कि बलेन महिमा यद्वस्ति कि भण्डनः
सद्दिद्या यदि कि घरनेरपय्शो यद्स्ति कि जृत्युना 1
(नीतिशतक ४५)
यहाँ प्रश्न-पूर्वंक लोन, पिशुनता आदि का निवारण किया गया है---
(७) अर्वान्तरन्यास-इस ग्रलंकार का प्रयोग मत हरि की नूक्तियों में कई
स्थलों पर हुआ है | शबर्थान्तरन्यात्॒ का लक्षण है--
सामान्य विशेषों दा तदन्येन समधथ्यंते 1
यक्तु सोउर्यान्तरन्यासः साथम्येंगेव्रेण वा ॥॥
(काव्यप्रकाद १०११० €)
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