विकेन्द्रित | Vikendrit

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Vikendrit by नरेन्द्रपाल सिंह - Narendrapal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चार बला और सजा है यह असाधारणता उत्कृष्ट शिष्टता, लालित्य, कृपा। हर असाधारण जीव की आकाश की उड़ान और पाताल की ढलाई गहन है। उसमें ईश्वरीय इप्टि भी है और शैतानी जज्ब भी | जहां समानता, सद्भावना और सुपात्रता है वहां अशिष्टता, असमानता और निराशा भी है। लेकिन इस असाधारणता के विभिन्‍न दायरे में एक अनूठी संपूर्णता है। निराशा के बहाव में उतार-चढ़ाव के बावजूद कोई अदृश्य शक्ति पीछा नही छोड़ती । ज्वार-भाटे उठते हैं, ज्वालामुखी फूटते हैं मेकित बर्फ के नीचे गजब की गरमाइश होती है, ऐसी बातों की उड़ान का कोई अन्त नहीं। यह तो सब शब्दों का तिलस्म है, असाधारणता का जादू । वैसे मुझे ऐसी आलंकारिक और शिल्पी लेखनी से चिढ है। चिढ़ से बढ़कर भी नफरत्त 1 यह सामंतवादी बुजुंआ शैली है। नहीं ? फिर क्यों दुखी होकर और कठिनाई मे पड़कर शब्द ढूंढ़ने की कमर बांघते शब्दकोश उलटते हैं। अपनी असाघारणता का सिक्का और सिप्पा जमाने ओर जतलातने के लिए । इसमें कुछ और भी जोड़ा जा सकता है अस्तित्ववाद, अभिव्यंजनावाद, उपयोगितावाद, संवेदनावाद इत्यादि । शर्म ! बेशर्मी ! शर्म और धिक्कार या मुवारक और शाबाश 1 हां, मैं असाधारण हूं इसमें कोई संदेह नही । प्रतिभा ही जानो। जो कुछ है तब ही ती दुनिया पढ़ती है न मेरी रचनाएं, मेरा काव्य, ऐसा अ-उपन्यास भी उपन्यास कहलायेगा; कूड़ा, साहित्य बनेगा। अगर असाधारण न होता तो पत्नी के साथ क्यों विगाड़ता । ४ के




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