21 वीं सदी की ओर विज्ञान के बढ़ते चरण | 21 Vi Sadi Ki Aur Vigyan Ke Badhate Charan

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21 Vi Sadi Ki Aur Vigyan Ke Badhate Charan by हरीश गोयल - Harish Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काफी गिर जाता है । इससे विपरीत सर्दी में दक्षिण गोलाउं में वायु मे कम घूल होती है, इससे कार्बन डाई आक्साइड की ध्रुवीय दोपी अत्यन्त साफ होती है। मंगल ग्रह की जलवायु पच्चीस हजार वर्ष बाद पूरी तरह बदल जायेगी। तब मंगल की उत्तर-ध वीय टोपी पूर्णतया जमी फार्बन डाई आवसाइड की बनी होगी तथा दक्षिण-प्रुबीय टोपी जमा जल तथा धूलि कण की वी होगी । वाइकिय अभियान के अनुसार तब मगल के वाताकरण में आज से दस हजार गुना अधिक जल होगा तथा जमे पानी की एक किलोमीटर मोटी तह होगी । उत्तर गोला्ड्ध में धूल पृथ्वी के मरुस्वलों के डथून के आकार में ही उडती है। ये टोले अद्धचर्द्राकार होते हे। थे औसतन दल मोटर ऊचे तथा तीन सौ मीटर लम्बे होते है । मंगल का भू-दृश्य, दैनिक त्ापक्रम में परिवतेत तथा तेज हवाओं के कारण निरन्तर परिवर्तित होता रहता है। शान्त समय में ये हवाए छ -सात मीटर प्रति सेकिड की गति से बढ़ती है । लेकिन तूफान के समय भूमि के निकट यह गति दस से बीस मी. प्रति से. तथा कुछ क्रिलों मीटर ऊपर सौ मी. प्रति सै. के निकट हो जाती है । इससे मंगल की चट्टानो पर जमी रेत मंगल की सतह पर या उल्कापात-गड्ढ़ों पर फंल जाती है। अत इसका धरातत चन्द्रमा की तरह निष्क्रिय नही है बल्कि मौसम के अनुसार निरन्तर परिवतित होता रहता है तथा वातावरण के साथ पारस्परिक क्रिया करता रहता है। मंगल सिलिकेट चट्टानों का एक ठोस पिड है, इसे भी क्रो, मेन्टल' ता पर्षटी मे विभक्त किया जा सकता है । इसको घनत्व (3 96) पृथ्वी से कम है लेकिन चख्रमा से अधिक है, इससे पता चलता है कि मंगल पर पृथ्वी की अपेक्षाकृत कम लौह है, लेकिन चन्द्रमा से अधिक । मगल पर शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र की कमी यह दर्शाता है कि इसका करोड़ में सिकले-्लोह की परात्रा अत्यन्त अल्प है। इसकी परपंदी 50 कि.मी. मोटी तथा लिथोस्फीयर की मोटाई 150 से 200 कि,मी. के बीच है। इसके ऋड की मोटाई 1300 मे 2000 कि.मी आऊी गयी है । इसका लियोस्फीअर अधिक ठोस है । मंगल के उत्तर और दक्षिण गोलाद में काफी अन्तर है। दक्षिण गोताड़ में क्र टर बहुतायत में पाये जाते है। ये उल्कापात के कारण उत्पन्न होते है । इससे यह चन्द्रधरातल-सा नजर आता है। इसके विपरीत उत्तर- मंगल ग्रह/25




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