श्रीसरयुपारीणब्राह्मण वंशावली | Shri Sarayu Pareen Brahman Vanshawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# सर्यूपारीणब्राह्मणवंशावली # २१
हैं तो बहाँ सब प्राणियों के हाथ का बनाया हुआ भोजन करते हैं।
साढू के घर जाते हैं वहाँ भी सबका बनाया भोजन करते हैें। कहिए
डन दानो जगह कोन सा सम्बन्ध हे ९ इन दोनों जगह बिना शास्त्रीय
सम्बन्ध के भाजन करते हैं | यह कैसा अन्य/य है १ अपने पृषञ्ञ ऋषियों
के सन््तान सरयुपारीणों का बनाया हुआ सरयुपारयी न खायें यह कितना
बड़ा अन्याय और अधरमम हैं। हम लोग २६ छाब्बस ऋषियों के सन््तान
हैं तो २१६ ऋषियों का परम्पर बनाया हुआ भोजन करने में क्या
पाप है और कहाँ लिखा है ? देखिये एक यह अन्याय कि पाँच सो घर
सरयूपारीण एकता करके आपस में विश्ञाह्ददि संबंध करक संगठित
व्यवहार आपस का ठाक करके सनमानी अपनी इच्छानुसार पंक्तिपावन
की पताका लेकर घुमने छगे। अन्य भाइयों को पंक्तिटूट या घरकर
या धाकर या नीच इन शब्दों से पुछारने ज्ञगे। श्रोत्तस्थात्तकमं परायण
बेदवेदाज्ञबक्ता भी ब्ाक्षण हो जिपमें पंक्तिपावन के छक्षण थयाथे
में पाये जाते हों उसे भी मध्यम व नीच की दृष्टि से आज कलछ
देखते हैं | कहते हैं कि ये पॉक्तटूट हैं। शाख्र तो इनको पक्ति टूट नदीं
कहता परन्तु जो संगठितरूथ मे आज़ कछ अपनी प्रसिद्धि कर पॉक्त-
पावनत्वेन सिक्का जमाये हुये हें वे €। नाच पद्वी से भाइयों का गन्ना
घोटत हैं। ज्ञातरेका हि विप्राणां क्रिया ततन्र गरीबसी। यत्र यत्र
क्रिया श्रष्ठा तन्न तत्र कुज्नीसता |॥।
एक और भी अन्याय हे-कहते हैं कि सरबार प्रान्त में रहनेबाले
जाद्मण सरयूप राण उत्तम हैं। ओर सरयू नदी के दक्षिण दूरस्थान में
रहनेवाले ब्राह्मण मध्यम हैं। सरवार श्रान्त में कन्या, पुत्र का विवाह करने
वाले ब्राह्मग सरयूपाराण उत्तन हैं। सरबार से बाहर रहनवाल तक्षणों
के साथ तिवाह्यांद करनवाले सरयूयाराण ब्राह्मण मध्यम्त हैं इत्यादि।
ऐसा कहने वाज्लों को विचार करना चाहिये कि यदि इन्हीं ऋषियों
के सन््तान द्वोते हुये कलिकराल के दबाब से जीविकाबश
सरबार प्रान्त छोड़कर भारतबष ही में बसे हैं, समुद्र के देशों में
नहीं गये हैं तो व कैसे मध्यम हो सकते हैं? अपने सदाचार
* कुलाचार के अनुसार २६ छब्बिस गोत्रवाले सरयूपारीण सब बराबर
. दर्ज के हैं |. उत्तम सध्यम की कल्पता करना श्रम्मूलक है।
५ थदि मनमाने द्वी उत्तम बनना हे तो वेद, शास्त्र के पृण जा ने वाले
. जैलस्सात्तबमेपर/ायण सदाचारी दो हजार चार हजार सरपूपाराण
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