श्री भक्रिशिरोमणि | Shri Bhakri Shiromani

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Shri Bhakri Shiromani by भगवन्त सिंह - Bhagavant Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- | ब्रॉलकोरंड 1 श्भः औताक्रे ।सब्॒हित भातु्भपिर्तु।करते अनेक प्राय ॥९ , ०० इहिसृख सहिलीदिवर्स कछ्ुगयऊ। पुनि:अंनम्राशन आदत मयड़॥ द्वेतिया मार्ग शाक्ष शशिःपूपा1 मिधुनखग्न शुभ प्रस्म/अदूपा ॥ पति मुदित वोलि मनिराज। अनम्राशमकर झण्यों सम्राजू) वेविध जं्तिःभोजन ;बनवाये॥ पव्स्संचारि मो ति। जो गये ॥ नाति ब्घुएन्नंपत्योति/पढ़ाये क सन्नन सकल सादर चलिआये॥ व सुत सकर्लाउबदिक्रअर्नपाई॥ सुन्दर: पट; भ्रपुण, पहिराई ॥ ले #प॥गोद। सुथना्ुसिलदीश।समवए | मुख) ग्रीस -+छुवाई ॥ पुनि अचवाय | प्रोचि सुखलीन्हा, द्वान मीन॑वहुओआतित ,कीन्हा ॥ पुत्नन म्रातु& निकट >अहुँचायेमिुत्रि बहिन ओज़न कखाये ॥ अब: प्रानी दीन्ही /सव7 कंहू।कहित,जायाजत मयोउदाह ॥ भब्रेग्रीघ)। कहिजात न सो मं एक अहा)मुदरल्लाग़ उच्ो-ज्पक़े पते) गण गे।तमामध सूतभ्लो ग्रशपावसापक्षि ऋदसमने ॥) भगवन्त विलोकत/मातः पिता, संत: ज़ीवनकी सिज़ााधरीगने॥ मुनि योगिन ढुलेश्न:खामि-सई ब्रश प्रेमंश्नयोन्दशायानल्तने # कुगइलिया5[ मे जनम एंकद्रिर्न पतन: मष्यज्सताय। इर्दिव श्ीरड हित पॉकवनायों जायज -पकवस्षत्री।ज़ाग मुदित पुनि-भोग |लगायोवझुतहि विलोक्यो सात-सवन- सोवत/स्वडढ़ पायी ॥ प्रूयों भ्रम:मनप्ताहि- निरखि पृत्नहि देठाते।उद्ीउगी सी मानू विलोकत+पावत रोम भाते निकल विलेकि करा -दिल्लो-मुस- ज्यायन अद्भुतहूप-असइ-निज तब! दीज्मी-देखसय ॥-तब द्वीन्हे हेखग़य रोम रोमन:प्रतिज।के | कोटि कोटिक्यांड्र :अमित सरल शशि-ताके ॥ ताके सरिसर सिख समि:हरि.शम्भ -विधाते॥ देखि चुरित।बहु,ऑति-वित्ते क्रीर्डी तह मात | नसवेया 1! कसा जमे बह ्लर + हा




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