इति श्री उत्तराध्ययन सूत्र प्रारम्भ | Iti Shri Uttaradhyayan Sutra Prarambh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
1064
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मूल:--हिय॑ विगयज्नया बुद्ध फरुसं पि अणुसासएं ।
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बेस त॑ होइ मूढाणं खन्तिलोद़्करं पं प्ए,
गाथा २९ भावार्थ--क्षेमरा भने सोस्य सने करी निर्मेणकारी ने शानादिक गुणनु स्थाडक एयी कझाण पण गुरुगी
शिप्रामण तरपनो जाण भने सात भयथी रहीत एवो साधु हीतकारी माने, अने अविनितने मुर्खने ते शिखासण हृपकारणी होय २९
अं ---॥9 पाठि प्रमुप आसनन जिपे | उ० वेसे केहने आसने ॥ ज० गुराथे डचे आसने नि बी
॥ भर० शब्अणथाते ॥ थि० निश्चछआसने ॥ ज० प्रयोजन उपने पण थोडो उठ्ठे || नि० न उड्ढे प्रयोजन बिना ॥
नि० वेसे | अ० द्वाथ पंग प्रमुप अंगदल्यतो थको ॥ ३०॥
मूलः--आसणे उवचिट्रेज्जा अणुच्चे अकुए थिरे।
अप्युट्राई निरुट्राई निसीएज्जडप्पकुछुए. ३०,
गांधा ३० भावाध--सुस््थी फिचे फ्चक्चाठादाक शब्द थाय नहीं एवा निश्चक आसनने विये हाथ अमुघ अंगहछा
मे ०.
पतो थरको वेश अने प्रयोज्न पस्ये थकके उठे बेश्े,;अयोजन बिना उठे बसे नही ३०
अथे --का० गौचरियादिक काने गये काछ बेछाए || नि० निकले उठे || भि० मिझखु साधु ॥ का ० का
टनिवेडाए || य० बी || १० पाछों चछे ॥ अ० अकाठने ॥ च० जेमणी॥ प्रि० वर््नि ॥ का० क्रियाने लज्सरे॥]
का9 ते क्रिया अनूष्टानना काठने ॥ स० समावरे ॥ ३१ ॥
मूल---कालेण निकखमे ज़िकखू कालेण य पमिक्मे ।
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