उत्तराध्ययन सूत्र | Uttaradhyayan Sutr

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Uttaradhyayan Sutr by श्री शान्ति मुनि - Shri Shanti Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्नगनगननिनगनभभगनन लिन नक नल न लिन वन न नन्‍ व की ल्‍न्‍न न नननन तन नल >> >> नल न ललनलिननननन नस न शनननननन नि लिननख कह ५ सस्कृत छाया- चबमा चुद्धा अनुशासन्ति, शीतेब परुषेण वा। मम लाभ इति प्रैक्ष्य, प्रयतस्ततू प्रतिश्रुणुयात्‌ ॥२ ७ ॥1 अन्वयार्थ-सीएण-शीतल वचनो से, वा-अथवा, फरुसेण-कठोर बचनो से, बुद्धा-प्रबुद्ध आचार्य, मे-मुझ पर, ज-जो, अणुसासति-अनुशासन करते हें (उसमे), मम-मेरा, लाभो-लाभ है, त्ति-इस प्रकार, पेहाए-विचार करके, पथओ-प्रयल पूर्वक, त-उस (अनुशासन) को, पडिस्सुणे-स्वीकार करे। भावानुवाद-आचार्य प्रिय अथवा कठोर शब्दो से जो मुझ पर अनुशासन करते है, वह मेरे हित के लिए है एसा विचार करके उनके अनुशासन अर्थात्‌ शिक्षा चचनो का सबल प्रतिश्रुत अर्थात्‌ स्वीकार करे। 28 कठोर अनुशासन भी हितकर मूल गाथा- अणुम्नास्णमोवाय, दुककइस्स ये चोयण। हिय त् मण्णई पण्णो, वैम्न होड़ अम्नाहुणो॥२६॥ सस्कृत छाया- अनुशासनगौपाय, दुष्कृतस्य च चोदबगू। छित तब्गन्यते प्राज़ञ , द्वैष्य भवत्यसाधी 1२6॥ अन्वयार्थ-अणुसासण-( कठोर) अनुशासन, दुबकडस्स-दुष्कर्म का, चोयण-निवारक, य-और, ओवाय-(सदगुण बुद्धि का) उपाय है, पण्णो-बुद्धिमान शिष्य, त-ठस ( अनुशासन) को, हिय-हितकर, मणणई-मानता है (किन्तु), त-वही, असाहुणो-अयौग्य शिष्यो के लिए, वेस-द्वेष का कारण, होड-होता है। भावानुवाद-आचार्य प्रसगानुसार मूदु अथवा कठोर शब्दो से शिष्य को उसके दुष्कृत्यो के प्रति सतर्क करते है उस अनुशासन को प्रज्ञावान्‌ शिष्प अपने लिए हितप्रद मानता हैं। जबकि असाधु अर्थात्‌ अविनीत शिष्य को उसी अनुशासन से द्वेष उत्पन्न हो जाता है। 29 आत्महित्त का कारण-अनुशासन मूल गाथा- हिय विगयमया बुद्धा, फरसपि अणुसास्तण। बेस व होड़ मूहाण, खतिम्तोहिकर पय॥१९॥ सस्कृत छाया- हित विगवभया बचुद्धा , परुषगप्यनुशासनम्‌। द्वैष्य तद्‌ भवति गूढावा, क्षाग्विशुद्धिकर पदगू॥२९॥ -अन्वयार्थ-भया-भय से, विगय-रहित, बुद्धा-तत्त्वज्ञ शिष्प, फरुस-गुरु के कठोर, अणुसासण-अनुशासन का -हितकर मानते हैं (किन्तु), त-वही, खति-क्षमा, (और) सोहिकर-आत्मशुद्धि करन वाला, पय- पद, घूडाण-मूर्ख शिप्पो के लिए, ब॑स-द्वेष का कारण, होड़-होता है। कै प्रशावान, मेधावी, भयमुक्त शिष्य गुरु के कठोर अनुशासन फा भी आत्म हितार्थ मानता है-स्थीकार की वही क्षमा भाव जगाने चाला और चित्त विशुद्धि करने वाला गुर का अनुशासन अनॉ-मूर्यों के लिए हित जाता है। ह 4 26 7 सन समपलनसका हा... 5 (52 क्या त्य्त्््ः्ःॉ छत _ 1 12-5,£5..७




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