हिन्दी विपूवकोष | Hindi Vipoovakosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
760
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिंशुपास्थल--शिक्य १६
ऋणगैिदगें लिखा है, कि पद कोप्टनिमित रथ अति-
_ शप हढ़ होता दे। “भोजोधेष्ट स्पन्दने श्िशप्रया ( ऋक
संपश१६ ) २ जशोकका इक्ष ।
' शिशुतस्थक्ष (स० की० ) एपानभेद ।
। शॉशपास्थक देखो |
शिशुप्तार ( से० पु० ) शिशुप्तार, सःस नामक अलजस्तु।
( ऋक १॥११६॥१८ )
शिद्वान ( स० क्ो+) १ छौहमछ, मरखाई। ४ कॉचका
वरतन। वेछटि।
शि(स'०पु०) १ मिच, महादेव !
३ शान्ति । 8४ भैय्यां । |
शिक्षज्ञा ( फा० पु० ) ३ दबाने, कसने था सिचोडनेका
परत ! २ प्रेच कसनेफ्ा परत या चौजञार जिससे शिहद-
ब'द फिताये' दवाते भर उसके पन्ने हाटते हैं। % पेरने-
का यन््ल, फोल्दू। ७ रुई दवानेक्नी कल, पेंच । ८ प्रानोन
कालहा अभपराधियों'का कठोर दृणड देनेशे छिये पंक
गर्ल शिखमें उनकी टांगे कस दी जाती थीं॥६ घद
तासा मिससे झुलादे धुप्रावदार वद् बनाते भौर पतनिक
बांधते ईैं।
जशिड्मन ( फा० स(त्री० ) सिकुहनेस पढ़ो हुई घारो, छुड़ कर
दबनेसे पड़ी हुई छभोौर, सिलयट !
शिक्षण ( फः० पु० ) डर, पेट )
शिह्षप्ी ( फ़रा० बि० ) पेट-समंस्धो। निश्ञकता, जपना ।
शिक्ष्मों कापुस धार ( फा० पु०) यह काश्तक्वार जिसे
जीतनेक लिये खेत दूसरे राशवश्तारसे मिला दो । इसका
दक खास फराएतद्वारवे हकले बहुत्त कम दोत! है ।
शिकरा ( फा० पु० ) पत्र प्रकारका बाज पक्ठी |
शिक्रया ( अ० पु० ) शिक्षायत, उलाहना 1
शिकस्त ( फा० खो० ) ३ द्वाए, पशाजय, मात 1 २ सांग,
इटमा। ३ विफदतता, असिद्धि
शिघ्चस्ता ( फा० यि० ) १ भन्न, हटा हुआ । ( ख्रो० )
२ ३हूँ या फांरसोक्ो घसीट छिखादद) '
शिद्वायत ( अ० खो० ) १ घुराई करता, चुगलो, भिक्रवा1
द शिखी मूल, से <, दोष आदिक्ञो बातों मनमें दो ।
३ डपालश्स, उलाहना ।
शीमारी ।
२ खुब, सौमाग्य 1
४ शारीरिक अशरथता, सेंग,
शिह्तार ( फा० पु० ) १ जब पशुओोकोा मारनेका कार्य
या क्रोडा, माखिट, सुगंध! । ६ वह जानवर जो मारा
गया दी! दद्ाद्वार, भदह्य। ४ कोई ऐसा आदमी
जिसके फ सने या वशर्मे हॉमेसे बहुत लाम दो, मसामी
७ गोइत, मांस ।
शिक्वार गड़द्ा (द्वि० पु० ) बद बड़ा गइदा जे शिक्रारी
ज्ञानश्रों के फ सानेके लिये खोदने है |
शिक्षास्माद ( फा० खो० ) शिक्षार खेछनेका स्थान।
द्िड्तस्वाद ( फा० पु०) बड़ तस्मा जे। घाड की दुमके
पास चारज्ामैक पीछे शिकार छटकाने या आवयश्पक
सामान वांधनेके लिये लगाया ज्ञावा है !
शिकारो (फा० पु० ) ९ आखेट फरनेवालां, शिक्रार करने-
बाला, गदिरी ) ( धि० ) ४ शिकार फ़रनेवाछा, अडूलो
वशुओंको पकड़ने या मारनेत्राछा | जेसे,--शिक्तारी कुत्ता ।
३ शिक्रास्में काम्र फरनेबाल्ा । जैसे,--शिकारों कोट,
शिकरारों लेमा।
शिक्राल ( फा०9 पु० ) बद थोड़ा जिसदा झगछा दादिना
चैर और पिछला दांप! पैर सफेद दे । यदद दैपो माना
ज्ञाता है ।
शिक्ष ( सं० बि० ) गश्थवसायी, बिनो रोजगारका ।
शिक्ष ( स'० छरि० ) मधघुनात द्रष्यविशेष, मधूच्छिएक, मोम ।
पर्याप--शिक्थर, मधुज, विधत्त, मघुसम्भव, ोदन,
काच, . उच्छिए, मशिकामर, क्षौद्य, पीतराण,
ह्निग्ध, मश्िक्राज, क्षौद्रण, मचुशेष, द्रायफ, भश्िकाभय;
मघृत्यित, मधूटय । गुण--विच्छिल, खादु, कुछ, बात
सौर अल्लनदेषनाशक, म्दु, फटु ओर फ्सि्घ । इसका
अछेप देनेस स्फुटिताडु: विलेपन अर्थात् शरीरका ऋदा
दुआ रुधान उत्तमझूउसे निराकुत दोता दै। ( राजनि० )
शिक्थक (स'० छ्ली०) शिक.ध-स्वाये' ऋन। शिक्न थे, मेम
गिवय ( स० क्लीौ०) संस (ससे; शिक्ुद-किय। उस
४1१६ ) इति यतह्, सच किस, कुडागमः शिरादेशश्व | १
छतमे ऊड़कता हुआ रघ्सीका जालोदार स'पुट झिस पर
दूध, दुद्दी आादिवण मटका रखते दे, छोका, सिवदर |
प्रथाया--काच, शिकपा, शिक््। २तराजुकों रस्सो। ४
बंद गोफे देशनो छोरें। पर बंधा हुआ रम्सीका जाल
जिस पर वोफ रखते है ।
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